हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,सिपाह ए इमाम रज़ा अलेहिस्सलाम के मुतअल्लिक दफ्तर नुमाइंदगी वली-ए-फकीह हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अब्दुल रज़ा रस्तगार ने नमाज ए जुमआ के खुतबों से पहले रवाक-ए-इमाम खुमैनी (रह), हरम-ए-मुतह्हर रिज़वी (अ.) में सक़ाफत-ए-फातिमी के बे-नज़ीर मकाम और उसके दीनी बसीरत और समाजी मुक़ाविमत की तशकील में करदार को बयान किया।
उन्होंने कहा,कुतुब-ए-लुग़त में हज़रत फातिमा सलामुल्लाह अलेहा के नाम-ए-मुबारक के कई मआनी ज़िक्र हुए हैं और इस नाम का नुमायां पहलू, हज़रत ज़हरा अलेहास्सलाम की शख्सियत का बे-नज़ीर होना है। हज़रत फातिमा ज़हेरा सलामुल्लाह अलेहा खल्कत-ए-इलाही का एक मज़हर हैं।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन रस्तगार ने मज़ीद कहा, हदीस-ए-कुद्सी में आया है कि अगर "पैग़म्बर-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलेहि व आलही न होते तो आलम-ए-खल्क न होता, अगर अमीरुलमोमिनीन हज़रत अली अलेहिस्सलाम न होते तो पैग़म्बर-ए-कामिल न होते और अगर फातिमा न होतीं तो इमामत का सिलसिला बाकी न रहता।
उन्होंने अपनी गुफ़्तगू के दौरान हज़रत फातेमा सलामुल्लाह अलेहा की मुनफ़रिद ख़सूसियात का ज़िक्र करते हुए कहा,वह वाहिद खातून हैं जो दौरान-ए-जनीन में अपनी वालिदा से हमकलाम हुईं, वह बेटी जिनके हाथों पर बेहतरीन मखलूकात ने बोसा दिया और वह वासितए-इत्तिसाल-ए-नबूवत व इमामत हैं और मोतबर नक्ल के मुताबिक इमामे जमाना अज्जलल्लाहु तआला फरजहुल शरीफ ने उन्हें अपने लिए उस्वा व नमूना क़रार दिया है।
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