गुरुवार 11 दिसंबर 2025 - 11:25
क़ुरआन की शिक्षाओं को सामान्य लोगों की समझ में आने वाले ढंग से पेश किया जाए ताकि आम लोग भी समझ सके

हौज़ा / हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहसिन क़राअती ने विद्वानों और धर्मशास्त्र के छात्रों को संबोधित करते हुए कुछ अप्रभावी शोधों की आलोचना करते हुए कहा कि धार्मिक प्रचार इस तरह से होना चाहिए कि आम लोग इसे समझ सकें और विशेषज्ञ भी इसे पसंद करें।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहसिन क़राअती ने विद्वानों और धर्मशास्त्र के छात्रों को संबोधित करते हुए कुछ अप्रभावी शोधों की आलोचना करते हुए कहा कि धार्मिक प्रचार इस तरह से होना चाहिए कि आम लोग इसे समझ सकें और विशेषज्ञ भी इसे पसंद करें।

पवित्र शहर क़ुम में आयोजित एक बैठक में उन्होंने बताया कि कुछ केंद्रों में क़ुरआन पर सैकड़ों शोध पत्र मौजूद हैं, लेकिन उनमें से बहुत से विषय लोगों की व्यावहारिक ज़रूरतों से दूर हैं और उन्हें मीडिया या सार्वजनिक स्तर पर प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। उनके अनुसार, शोधकर्ताओं को उन विषयों पर समय देना चाहिए जो सीधे तौर पर समाज के काम आएँ।

नमाज़ कमेटी के प्रमुख ने ज़ोर देकर कहा कि एक-एक व्यक्ति के पास जाकर तब्बलीग़ करना सबसे प्रभावी तरीक़ा है। छात्रों को चाहिए कि लोगों के करीब जाएँ और धार्मिक ज्ञान को सरल भाषा में समझाएँ, क्योंकि जो छात्र इस क्षेत्र में सक्रिय होते हैं वे अधिक सफल रहते हैं।

उन्होंने कहा कि तफ़सीर (क़ुरआन की व्याख्या) इस तरह लिखी जानी चाहिए कि आम लोग भी इसे आसानी से समझ सकें और शैक्षणिक वर्ग भी इसे पसंद करे। पवित्र क़ुरआन में कहा गया है: "وَلَقَدْ یَسَّرْنَا الْقُرْآنَ لِلذِّکْرِ فَهَلْ مِنْ مُدَّکِرٍ" (और हमने क़ुरआन को स्मरण के लिए आसान बना दिया है, तो क्या कोई है जो शिक्षा ग्रहण करे?)

मुफ़स्सिर-ए-क़ुरआन (क़ुरआन के व्याख्याकार) ने युवाओं की आर्थिक और वैवाहिक समस्याओं का उल्लेख करते हुए कहा कि आज युवा रोज़गार और शादी की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। यदि छात्र और छात्राएँ कम संसाधनों के बावजूद सादा जीवन पर राजी हो जाएँ तो वे वैवाहिक जीवन की शुरुआत अच्छी तरह कर सकते हैं। कठिन शर्तें ही मुश्किलों को बढ़ाती हैं।

अंत में उन्होंने छात्रों को सलाह देते हुए कहा कि आप किसी के इंतज़ार में न रहें, बल्कि खुद पहेल करें। यदि योग्यता और तत्परता हो तो अवसर स्वयं सामने आ जाते हैं। उन्होंने बताया कि उन्होंने पवित्र क़ुरआन से २६०० अधिकार-संबंधी बिंदु निकाले हैं जो आज विश्वविद्यालयों में पाठ्य सामग्री के रूप में पढ़ाए जा रहे हैं।

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