बुधवार 19 फ़रवरी 2025 - 14:58
बिना अध्ययन के तक़रीर करना लोगों की उम्र और समय के साथ विश्वासघात है/क़ुरआन का संदेश साफ़ और स्पष्ट बयान करें

हौज़ा / क़ुरआन के मुफ़स्सिर ने कहा, मजलिसों में क़ुरआनी सामग्री बयान होनी चाहिए और लोगों को क़ुरआनी शिक्षाओं का पाबंद बनाना चाहिए। गैर मौजूद शायरी और कहानियों के बजाय, मजलिसों और तबलीगी दिनों में क़ुरआन की शिक्षाओं से लोगों को अवगत कराएं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसारक़ुरआन के मुफ़स्सिर हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहसिन क़राअती ने बीते दिन रमज़ान 1446 हिजरी क़मरी के सिलसिले में अपने पहले ख़ुतबे में क़ुरआनी तबलीग़ के विषय पर भाषण देते हुए क़ुरआन की तौहीन की कुछ मिसालें पेश कीं।

कई मस्जिदों में शब-ए-क़द्र जो कि क़ुरआन के नुज़ूल की रात है तब भी क़ुरआन की तफ़्सीर सही तरीक़े से बयान नहीं की जाती ज़्यादातर ध्यान शायरी, क़िस्सों और तारीख़ी घटनाओं पर दिया जाता है क़ुरआन का संदेश साफ़ और आम लोगों के लिए समझने योग्य होना चाहिए जबकि मौजूदा तफ़सीरें ज़्यादातर समाज के ख़ास तबक़े के लिए हैं।

उन्होंने क़ुरआन की तफ़्सीर के तरीक़ों की आलोचना करते हुए कहा,क़यामत के दिन लोगों का हिसाब-किताब क़ुरआन के अनुसार किया जाएगा न कि फ़िक़्ह और दर्सी किताबों के मुताबिक़ तफ़्सीर ऐसी होनी चाहिए कि हर कोई उससे लाभ उठा सके।

उन्होंने ज़िंदगी के हर पहलू में क़ुरआन से मार्गदर्शन लेने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा,क़ुरआन सिर्फ़ एक पवित्र किताब नहीं है, बल्कि इसे ज़िंदगी के मार्गदर्शन के रूप में अपनाया जाना चाहिए।

उन्होंने तबलीग़ और मजलिसों में क़ुरआन की भूमिका पर जोर देते हुए कहा,मजलिसों में क़ुरआनी सामग्री प्रस्तुत की जानी चाहिए और लोगों को क़ुरआनी शिक्षाओं का पालन करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। ग़ैर-मौजूद शायरी और क़िस्सों के बजाय, मजलिसों और तबलीगी अवसरों पर क़ुरआन की शिक्षाओं से लोगों को परिचित कराए।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहसिन क़राअती ने क़ुरआन की तफ़्सीर में मौजूद कुछ समस्याओं की ओर इशारा करते हुए कहा,वर्तमान तफ़सीरें अधिकतर ख़ास लोगों के लिए हैं, जिससे आम लोग कम फ़ायदा उठा पाते हैं। क़ुरआन का संदेश स्पष्ट और आम जनता के लिए बोधगम्य होना चाहिए।

राजनीतिक और सामाजिक विषयों पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा,क़ुरआन की तफ़्सीर में राजनीति को शामिल नहीं किया जाना चाहिए तफ़सीरें केवल धार्मिक और नैतिक मूल्यों पर आधारित होनी चाहिए।

अंत में उन्होंने समाज में उलेमा की भूमिका पर जोर देते हुए कहा,उन्हें क़ुरआन को गंभीरता से पढ़ना चाहिए और लोगों को भी इसकी शिक्षा देनी चाहिए।

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