मंगलवार 11 मार्च 2025 - 18:11
इस्लाम और शिया किसी भी कौम,नस्ल,या भौगोलिक सीमा में सीमित नहीं किया जा सकता।आयतुल्लाह आराफ़ी

हौज़ा/ ईरान के हौज़ा इल्मिया के प्रमुख ने कहा, कि इस्लाम और शिया मत किसी विशेष जाति, नस्ल या भौगोलिक सीमा तक सीमित नहीं हैं बल्कि यह एक वैश्विक संदेश है जिसे पूरी दुनिया तक पहुँचाया जाना चाहिए।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, आयतुल्लाह अली रज़ा आराफ़ी ने इंटरनेशनल विलायत चैनल के प्रमुखों और अधिकारियों से मुलाकात के दौरान उनकी सेवाओं की सराहना करते हुए कहा,इस्लाम और शिया मत की शिक्षाओं को पूरी दुनिया में फैलाया जाना चाहिए ताकि यह एक वैश्विक विचारधारा बन जाए न कि इसे किसी एक जाति या क्षेत्र तक सीमित समझा जाए।

उन्होंने वरिष्ठ धर्मगुरु आयतुल्लाह मक़ारिम शीराज़ी की सेवाओं का उल्लेख करते हुए कहा,उन्होंने धार्मिक मीडिया के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान दिया है और उनकी कोशिशें प्रशंसा के योग्य हैं।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने पवित्र रमज़ान महीने की महानता पर प्रकाश डालते हुए कहा,यह महीना केवल एक विशेष समय नहीं है बल्कि एक आध्यात्मिक वास्तविकता है जो मनुष्य के आत्मिक विकास और प्रशिक्षण का अवसर प्रदान करता है रोज़ा, क़ुरआन का पाठ, दुआ और इबादत इस महीने की गहराइयों को समझने के साधन हैं।

उन्होंने धार्मिक मीडिया के महत्व को उजागर करते हुए कहा,धार्मिक चैनलों की जिम्मेदारी है कि वे रमज़ान के वास्तविक संदेश और इसकी बरकतों को सही तरीके से जनता तक पहुँचाएँ ताकि अधिक से अधिक लोग इस पवित्र महीने का लाभ उठा सकें।

ईरान के हौज़ा इल्मिया प्रमुख ने धार्मिक शिक्षाओं के प्रचार प्रसार में वैज्ञानिक अध्ययन और इस्लामी न्यायशास्त्र (फिक़्ह) की गहरी समझ की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा,जो संदेश धार्मिक मीडिया में प्रस्तुत किए जाते हैं वे प्रामाणिक और प्रमाणित होने चाहिए।

क़ुरआन और हदीस की व्याख्या के लिए विद्वानों और न्यायशास्त्रियों का मार्गदर्शन अनिवार्य है ताकि धर्म का संदेश सही और प्रमाणिक रूप में प्रस्तुत किया जा सके।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने आधुनिक मीडिया के बदलते परिदृश्य की ओर इशारा करते हुए कहा,धार्मिक मीडिया को आधुनिक तकनीक और समकालीन भाषा के उपयोग पर ध्यान देना चाहिए जैसे कि शहीद मुतहर्री ने पश्चिमी दर्शन को समझकर इस्लामी शिक्षाओं के अनुरूप प्रस्तुत किया उसी तरह आज भी धार्मिक संदेश को आधुनिक आवश्यकताओं के अनुसार प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने की जरूरत है।

उन्होंने आगे कहा,भाषा, चित्र और तकनीक के माध्यम से धार्मिक संदेश को अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है हमें विभिन्न भाषाओं में अहले अलबैत (अ.) की शिक्षाओं को प्रस्तुत करने के लिए आधुनिक संचार माध्यमों का अधिकतम उपयोग करना चाहिए।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने धार्मिक मीडिया की प्रगति के लिए मजबूत और दीर्घकालिक योजनाओं की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा,सिर्फ़ अस्थायी और छोटे पैमाने पर किए गए प्रयास पर्याप्त नहीं हैं बल्कि हमें दीर्घकालिक रणनीति अपनानी होगी ताकि हमारा संदेश स्थायी प्रभाव छोड़ सके।

उन्होंने धार्मिक मीडिया के सामने आने वाली चुनौतियों का उल्लेख करते हुए कहा,हमें अपने विरोधियों और मीडिया के क्षेत्र में आने वाले खतरों को समझना होगा यदि हम इन चुनौतियों से अनजान रहे तो हमारी धार्मिक पहचान को नुकसान पहुँच सकता है।

उन्होंने अंत में कहां,हमें धार्मिक मीडिया को आधुनिक तकनीक से जोड़ना होगा इस्लामी शिक्षाओं को राष्ट्रीय और भाषाई सीमाओं से निकालकर एक वैश्विक संदेश के रूप में प्रस्तुत करना होगा और इस क्षेत्र में अहले अलबैत (अ.) की शिक्षाओं को पूरी दुनिया में प्रचारित करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।

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