रविवार 16 नवंबर 2025 - 07:06
छात्रों को शैक्षणिक प्रगति और आध्यात्मिक विकास के लिए निरंतर और अथक प्रयासों को बहुत महत्व देना चाहिए

हौज़ा / आयतुल्लाह आराफी ने कहा: रूहानी तरक़्क़ी तभी मुमकिन है जब इंसान अपने भीतर की बेदारी, ज़हनी होशियारी और दिल की निगहबानी को मजबूत करे, क्योंकि इंसान की रूह शैतानी फुसफुसाहटों और नफ़्सानी इच्छाओं के हमलों का निशाना होती है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट अनुसार, हौज़ा इल्मिया क़ुम के नए दाख़िला लेने वाले छात्रों के साथ आयोजित एक कॉन्फ़्रेंस में, हौज़ा इल्मिया के निर्देशक आयतुल्लाह अली रज़ा आराफी ने कहा: जिस तरह इमाम खोमैनी (रहमतुल्लाह अलैह) ने तुग़यानी हुकूमत के घुटन भरे दौर में थोड़े से तालिब-ए-इल्म के बीच "हक़ का चिराग़" जलाए रखा, उसी तरह आज भी वह हौज़ा जो “क़ियाम लिल्लाह” (ख़ुदा के लिए उठ खड़ा होना) को अपना केंद्र बना ले, वह दुनिया की बड़ी-बड़ी ताक़तों के तूफ़ानों का सामना करते हुए, दुनिया के हालात को “अदल-ए-इलाही” के हक़ में बदलने की ताक़त रखता है।

उन्होंने नौजवान छात्रों के इस रास्ते को अपनाने की सराहना करते हुए अपनी बात की शुरुआत सूरह सबअ की आयत नंबर 46 “قُلْ إِنَّمَا أَعِظُکُمْ بِوَاحِدَةٍ أَن تَقُومُوا لِلّٰهِ مَثْنَىٰ وَفُرَادَىٰ क़ुल् इन्नमा आएज़ोकुम बिवाहेदतिन अन तक़ूमू लिल्लाहे मस्ना व फ़ुरादा” की तफ़्सीर से की। हौज़ा इल्मिया के निर्देशक ने कहा कि यह आयत, क़ुरआन करीम की बेमिसाल और गहरी आयतों में से एक है। यह एक वसीअ मायनों वाला समंदर है। आज मैंने इसे इसलिए चुना है ताकि आप नौजवान तालिब-ए-इल्म, अपनी इस पवित्र और लंबी इल्मी व रूहानी राह की शुरुआत इसी नूर से करें और इसे अपना “चराग़-ए-राह” बनाएँ।

हौज़ा ए इल्मिया के निर्देशक ने नए छात्रों को संबोधित करते हुए कहा: आप नौजवान जो आज दीन की तालीम के रास्ते को चुनकर मस्जिदे मुकद्दस जमकरान में इमाम-ए-असर (अज्जल्लल्लाहु तआला फ़रजहुश्शरीफ़) से अपने नए अहद की ताज्दीद कर रहे हैं, इस आयत को अपने इल्मी व रूहानी सफ़र का नमूना बनाएं। हौज़ा इल्मिया का रौशन मुस्तक़बिल, मुल्क और आलम-ए-इस्लाम का भविष्य आपके कंधों पर है। इसमें कामयाबी का राज़ ख़ुदा के लिए क़ियाम, तफ़क्कुर, तज़कीया-ए-नफ़्स और इल्म व अमल में इस्तिक़ामत में है।

आयतुल्लाह आराफी ने कहा: तालिबे इल्म को चाहिए कि इल्मी तरक़्क़ी के लिए लगातार और बिना थके मेहनत करें, और साथ ही साथ रूहानी तरक़्क़ी को भी बहुत अहमियत दें। यह रूहानी तरक़्क़ी तभी संभव है जब इंसान अपने बातिन की बेदारी, ज़ेहनी होशियारी और क़ल्बी मुराकबा को मज़बूत करे, क्योंकि इंसानी रूह, शैतानी वसवसों और नफ़्सानियों ख़्वाहिशों के हमलों का लक्ष्य होती है।

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