۲ آذر ۱۴۰۳ |۲۰ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 22, 2024
प्रोफेसर अबुलकासिम

हौज़ा / मौलाना सैयद अबुलक़ासिम साहब अहले इल्म थे, इल्म दोस्त थे और मिम्बर से इल्मी गुफ्तुगू फरमाते थे, अपनी तक़रीरों में ग़ैर इल्मी, ग़ैर मन्तिक़ी, लफ्फाज़ी, ज़ाती क़ेयास आराइयों और मनगणंत रवायेतों से परहेज़ करते थे।

हौजा न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट अनुसार,  इंतेहाई अफसोसनाक ख़बर मौसूल हुई कि ख़तीबे अहलेबैत अ०स० प्रोफेसर मौलाना सैयद अबुलक़ासिम साहब का स्वर्गवास हो गया!

इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन 

दीन्दारी, शराफत, अख़लाक़, और मुन्कसिरुल मिज़ाजी मौलाना सैयद अबुलक़ासिम साहब की ख़ुसूसियत थी, पचास साल से ज़्यादा अरसे तक मुल्क व बैरूने मुल्क मे अज़ाई ख़िदमात अंजाम दी!
मौलाना सैयद अबुलक़ासिम साहब अहले इल्म थे, इल्म दोस्त थे और मिम्बर से इल्मी गुफ्तुगू फरमाते थे, अपनी तक़रीरों में ग़ैर इल्मी, ग़ैर मन्तिक़ी, लफ्फाज़ी, ज़ाती क़ेयास आराइयों और मनगणंत रवायेतों से परहेज़ करते थे, अगरचे आप एक दानिशवर थे लेकिन बयान मे आलेमाना झलक  थी!

इस वबाई दौर में जब आये दिन कहीं न कहीं से मुसलसल ग़म की ख़बरें मौसूल हो रही हों तो ऐसी दींदार, दानेशवर, अहेम और मुफीद शख़्सियत के फुक़दान की ख़बर ने मज़ीद रंजीदा कर दिया, यक़ीनन यह एक दीनी और क़ौमी नुक्सान है!
हम मरहूम के पस्मंदगान व वाबस्तेगान ख़ुसूसन सोगवार कुंबे की ख़िदमत मे ताज़ियत पेश करते हैं और बारगाहे ख़ुदा में दुआगो हैं कि रहमत व मग़फेरत नाज़िल फरमाये, जवारे अहलेबैत अ०स० में बुलंद दरजात अता फरमाये!

(मौलाना) सैयद सफी हैदर ज़ैदी 
सिक्रेटरी तनज़ीमुल मकातिब लखनऊ

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