۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024
مولانا سید صفی حیدر زیدی

हौज़ा/मौलाना सैय्यद सफी हैदर ज़ैदी साहब ने कहा कि ज़माना इस वक्त बुरे हालात से गुज़र रहा है, बेहतर यह है कि घरों में रहकर नई नस्ल को करें इज्तेमाई इबादतों की तरबियत

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , लखनऊ: खादिमाने इदारे तनज़ीमुल मकातिब की जानिब से शोहदाए राहे इल्म मौलाना अली मोहम्मद मोहम्मदी मरहूम,मौलवी मोहम्मद जौन मरहूम,ख़्वाहर हिना ज़हरा मरहूमा और मर्दे मोमिन ज़मीर हसन मरहूम की मजलिसे बरसी ऑनलाइन आयोजित हुई।
मौलवी सुहैल मिर्ज़ा ने पवित्र कुरआन की तिलावत से मजलिस का आगाज़ किया।
तनज़ीमुल मकातिब के सचिव मौलाना सैय्यद सफी हैदर ज़ैदी ने सूरे बकरा की 183 नंबर आयत "ऐ ईमान वालो!तुम पर रोज़े वाजिब किए गए जैसे तुमसे पहले उम्मतों पर वाजिब किए गए थे ताकि तुम मुत्तक़ी और परहेज़गार बन जाओ" को सरनामें कलाम क़रार देते हुए फरमाया जिस तरह मासूम से पूछा गया कि कैसे पता चले कि हमारी नमाज़ें क़बूल हुई या नही तो कुरआनी आयत"बेशक नमाज़ इंसान को बे हयाई और बुराई से रोकती है" (सूरह अन्कबूत, आयत 45) को पेश करते हुए इरशाद फ़रमाया अगर नमाज़ के बाद इंसान बुराइयों से दूर है तो उसकी नमाज़ क़बूल हुई लेकिन अगर इंसान में कोई तब्दीली नहीं आई तो उसकी नमाज़ क़बूल नही हुई।जब गुनाह के अंजाम देते वक्त हिचकिचाहट महसूस हो तो इंसान को समझ लेना चहिए कि शायद कोई सजदा क़बूल हो गया है जो गुनाह से रोक रहा है।इसी तरह रोज़े को अल्लाह ने मोमिनीन पर वाजिब किया ताकि वह मुत्तक़ी बनें,परहेज़गार बनें,एक महीने रोज़ा रखने के बाद ईद के दिन अगर इंसान अपने अंदर तकवा महसूस करे तो उसका रोज़ा क़ुबूल है।

मौलाना सय्यद सफी हैदर ज़ैदी ने रवायत(हज के मौक़े पर हज़रत इमाम जाफर सादिक अ०स० खाने काबा के पास तशरीफ फरमा थे, लोग तवाफ कर रहे थे कि इब्ने अबिलऔजा भी वहा आ गया,जैसे ही उसकी नज़र इमाम जाफर सादिक अ०स० पर पड़ी उसने हर बार की तरह तंज़ करते हुए कहा आप यहां क्यों आए हैं?इमाम ने फरमाया हज के मौक़े पर बहस व जदल करने की इजाज़त नहीं है लेकिन यह बात जान लो कि अगर तुम्हारा अक़ीदा (दीन का इनकार) सही हो अगरचे वह सही नही है तो हम जो आमाल अंजाम दे रहे हैं उससे हमे कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा और हम दोनो फायदे में बराबर के शरीक होंगे लेकिन अगर तुम्हारा अक़ीदा गलत हुआ और हक़ीक़त भी यही है तो आने वाले वक्त (क़यामत) में हम फायदे में होंगे और तुम नुकसान में होगे. इमाम अ०स० का यह जवाब सुन कर वह हैरत मे पड़ गया।) बयान करते हुए फरमाया आज हमारे समाज में जो बे दीनी फैल रही है,दीन व मज़हब के ज़रूरियात का इंकार सामने आ रहा है तो उनके लिए भी यही जवाब है जो इमाम जाफर सादिक अ०स० ने इब्ने अबिल औजा को दिया कि अगर तुम्हारा अक़ीदा सही भी हो तो हमारा अमल हमे नुकसान नहीं पहुंचाए गा लेकिन अगर तुम्हारा अक़ीदा सही नही हुआ तो तुम्हारा अक़ीदा और बे अमली तुम्हे यकीनन नुकसान पहुंचाए गी और हमारा अक़ीदा और अमल हमे ज़रूर फायदा पहुंचाए गा।

सचिव तनज़ीमुल मकातिब ने दौरे हाज़िर की मुश्किलात को बयान करते हुए कहा कि आज कोरोना महामारी की वजह से हम इज्तेमाई इबादतों से दूर हो गए हैं,जुमा व जमात आयोजित नही हो रहे हैं, मसाजिद और इमाम बारगाहें बंद हैं, लेकिन हमे इस बात पर तवज्जो देनी चाहिए कि यह इज्तेमाई इबादतें चाहे जुमा व जमात हों या मजालिस व अज़ादरी हों उनके बहेर हाल फायदे हैं तब ही उसका हुक्म दिया गया है लिहाज़ा हमे अपने घरों पर घर की हद तक इन इज्तेमाई इबादतों को मुनअक़िद करते हुए नई नस्ल की तरबियत करें ताकि जब यह मनहूस महामारी खत्म हो तो यह तरबियत उनके काम आए।

मौलाना सय्यद सफी हैदर ज़ैदी ने शोहदाए राहे इल्म का ज़िक्र करते हुए कहा अली मोहम्मद मोहम्मदी मरहूम ने कम उम्री में इल्मी मदारिज तय किए, जहाँ वह एक आलिम थे वहीं उनका नेक अमल और बेहतरीन अखलाक भी न काबिले फरामोश है, आज एक बरस गुज़र जाने के बाद भी ज़बानो पर उनका ज़िक्र और नज़रें उन्हें तलाश करती हैं, वह हर वक्त दीनी खिदमत के लिए तय्यार रहते थे।
वाज़े रहे पिछले साल 19 रमज़ानुल मुबारक 1441 हिजरी को जामिअतुज़ ज़हरा तनज़ीमुल मकातिब की होनहार तालिबा ख़्वाहर हिना ज़हरा का मुख्तसर अलालत के बाद इंतेक़ाल हो गया और उसके छटे दिन 25 रमज़ानुल मुबारक को सड़क हादसे में कारी ए कुरआन मौलाना अली मोहम्मद मोहम्मदी उस्तादे जामिया इमामिया,मौलवी मोहम्मद जौन और मर्दे मोमिन ज़मीर हसन का इंतेक़ाल हो गया था।

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