हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट अनुपसार, प्रयागराज/ यूपी में शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चुनाव में नियमों की अनदेखी का मामला अब अदालत की दहलीज तक पहुंच गया है इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस बारे में यूपी सरकार से जवाब तलब कर लिया है। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने यूपी सरकार को अपना जवाब दाखिल करने के लिए पांच हफ्ते की मोहलत दी है। यूपी सरकार को अदालत को यह बताना होगा कि उसने मुतवल्ली कोटे के चुनाव 10 साल से ज्यादा पुरानी वोटर लिस्ट के आधार पर क्यों कराए। सूबे में वक्फ सम्पत्तियों का पिछले एक दशक से ज्यादा वक़्त से ऑडिट क्यों नहीं कराया गया। अगर 10 सालों से ऑडिट ही नहीं हुआ तो यह पैमाना कैसे तय किया गया कि आज की तारीख में कौन-कौन से वक्फ प्रॉपर्टीज़ की सालाना आमदनी एक लाख रूपये से ज्यादा है और उसके मुतवल्ली वोटर व उम्मीदवार बनने के दायरे में हैं। अगर वोटर लिस्ट ही गलत है तो फिर चुनाव को वैध कैसे माना जा सकता है। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच इस मामले में 23 अगस्त को फिर से सुनवाई करेगी।
हालांकि अदालत ने आगे की चुनाव प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाई है, लेकिन अपने फैसले में यह जरूर कहा है कि अगर चुनाव प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाती है तो उसके नतीजे इस याचिका के फैसले के अधीन रहेंगे। अदालत का फैसला क्या होगा, यह तो निर्णंय आने के बाद ही पता चलेगा, लेकिन यह तय है कि एक बार फिर से चेयरमैन की कुर्सी पर काबिज होने का सपना देख रहे यूपी शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के निवर्तमान चेयरमैन वसीम रिजवी की कोशिशों को बड़ा झटका जरूर लगा है। वसीम रिजवी एक बार फिर मुतवल्ली कोटे से सदस्य जरूर चुन लिए गए हैं, लेकिन याचिका में सबसे ज्यादा एतराज़ उनके सदस्य बनने पर ही किया गया है।
अल्लामह ज़मीर नक़वी व अन्य लोगों की तरफ से दाखिल की गई याचिका में यूपी शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चुनाव के लिए यूपी सरकार द्वारा इसी साल 24 मार्च को जारी किये गए नोटिफिकेशन को चुनौती दी गई है। याचिका में मुतवल्ली कोटे का मानक तय करने के साथ ही वोटर लिस्ट तैयार करने और चुनाव के नोटिफिकेशन में नियमों की अनदेखी किये जाने का भी आरोप है। मामले की सुनवाई जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस जयंत बनर्जी की डिवीजन बेंच में हुई। हालांकि हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल होने के बाद ही सरकार ने चुनाव प्रक्रिया बीच में ही रोक दी थी। वसीम रिजवी और सैयद फैजी 20 अप्रैल को मुतवल्ली कोटे से शिया वक्फ बोर्ड के सदस्य चुने गए थे।
यूपी के शिया और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्डों में कुल 11 मेम्बर्स होते हैं
गौरतलब है कि यूपी के शिया और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्डों में कुल 11 मेम्बर्स होते हैं। इनमे आठ सदस्यों का अलग-अलग कैटेगरी में चुनाव होता है, जबकि तीन सदस्यों को सरकार नामित करती है। इन्ही 11 सदस्यों के बीच से चेयरमैन चुना जाता है। बोर्ड का सदस्य बनने के लिए मुतवल्लियों यानी वक्फ की प्रॉपर्टी के ट्रस्टियों के बीच से भी दो लोग चुने जाते हैं। सिर्फ उन्ही वक्फ प्रॉपर्टीज़ के मुतवल्लियों के बीच से दो सदस्य चुने जाते हैं, जिनकी सालाना आमदनी एक लाख रूपये से ज्यादा की होती है. हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है कि यूपी में इक्का-दुक्का छोड़कर किसी भी मुतवल्ली ने पिछले दस सालों से ज्यादा वक़्त से अपनी वक्फ प्रॉपर्टीज का ऑडिट ही नहीं कराया है।
याचिकाकर्ताओं के वकील सैयद फरमान नक़वी के मुताबिक मुतवल्ली कोटे के चुनाव एक दशक से ज्यादा पुराने रिकॉर्ड के आधार पर हो रहे हैं। आशंका है कि एक दशक में तमाम वक्फ प्रॉपर्टीज़ एक लाख से ज्यादा की आमदनी के दायरे से बाहर हो चुकी होंगी, जबकि तमाम नए वक्फ अब इस दायरे में आ चुके होंगे। वक्फ प्रॉपर्टीज़ का ऑडिट रोके जाने का खेल जुफर फारूकी के सुन्नी वक्फ बोर्ड और वसीम रिजवी शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन बनने के बाद से शुरू हुआ है, क्योंकि दोनों ही पहले मुतवल्ली कोटे से अपने-अपने बोर्डों में मेंबर बनते हैं और बाद में रसूख व सत्ता पक्ष से नजदीकियां जोड़कर चेयरमैन पद पर काबिज हो जाते हैं। यह हाल तब है जब वक्फ एक्ट की धारा 46 और 47 में यह साफ़ तौर पर कहा गया है कि हरेक वक्फ का सालाना ऑडिट अनिवार्य है। याचिकाकर्ताओं के वकील सैयद फरमान नकवी के मुताबिक शिया वक्फ बोर्ड से पहले यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चुनाव को भी हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। वह मामला अभी विचाराधीन है।