۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024
मौलाना सरताज जैदी

हौज़ा / रमज़ान के पहले शुक्रवार को आसिफी मस्जिद में उमड़ी नमाजियों की भीड़ , दुनिया में शांति और व्यवस्था की दुआ मांगी गई।

हौज़ा न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, लखनऊ/आसिफी मस्जिद के नायब इमामे जुमआ मौलाना सैयद सरताज हैदर जैदी ने रमज़ान के महीने के पहले जुमआ के खुत्बे मे रमज़ान के महीने की महानता और पुण्य का वर्णन करते हुए कहा कि रमज़ान का महीना इबादत और गुनाहों से पाक होने का महीना है।

मौलाना ने कहा कि एक मोमिन के कई गुणों का उल्लेख किया गया है लेकिन इमाम जाफर सादिक (अ.स.) द्वारा कुछ विशिष्ट विशेषताओं का उल्लेख किया गया है। उसे अल्लाह के रास्ते में खर्च करना चाहिए। उसे अनावश्यक नहीं बोलना चाहिए। लोगों को उसकी बुराई से सुरक्षित रहना चाहिए और वह लोगों के साथ न्याय करना चाहिए। एक मेमिन वह है जो सभी की मदद करता है। दो बार धोखा न दें। बेशक मोमिन के कई गुणों का उल्लेख किया गया है लेकिन रमज़ान के महीने में मोमिन के विशेष गुणों का उल्लेख किया गया है। मैं उसे इनाम दूंगा अपने हाथों से या मुझे इसके लिए दंडित किया जाएगा।

सहरी और इफ्तार का महत्व बताते हुए मौलाना ने कहा कि सहरी करना पैगंबर की सुन्नत है। कुछ लोग कहते हैं कि हमें सेहरी की जरूरत नहीं है और वे सहरी के बिना रोज़ा रखते हैं, ऐसा करना सही नहीं है। उन्होंने सहरी करने का भी आदेश दिया है। इसलिए सेहरी में कुछ न कुछ पीना जरूरी है, भले ही वह सिर्फ एक घूंट पानी ही क्यों न हो।

मौलाना ने इफ्तार की महानता की व्याख्या करते हुए पवित्र पैगंबर की हदीस का हवाला देते हुए कहा कि जो व्यक्ति हलाल खुरमा (खजूर) के साथ अपना रोज़ा इफ्तार करे उसकी नमाज का सवाब चार सौ नमाजीयो के बराबर होगा हलाल ही है जो मानव को मानवता पर बाकी रखता है। यदि कोई व्यक्ति हलाल का पालन नहीं करता है, तो वह जानवरों की तरह कही भी मुंह मारने लगेगा, इसलिए हलाल चीज़ो पर हंगामा करना उचित नही है, इन मुद्दों को बेहतर ढंग से समझना चाहिए।

मौलाना ने कहा कि पैंगबरे इस्लाम ने कहा है कि अगर कोई व्यक्ति इफ्तार के समय एक रोटी देता है, तो उसके पाप माफ हो जाएंगे, इसिलए लोग रोजेदारो का इफ्तार कराते है क्योकि इसका सवाब बहुत अधिक है। मस्जिदो मे इफ्तार का प्रबंध किया जाता है कही ऐसा ना हो कि भूखे और जरूरतमंद लोग वंचित रह जाए। अगर मालूम हो कि वहा पर कोई ज़रूरत मंद मौजूद है तो वहा तक इफ्तार पहुंचाना सुन्नते आइम्मा है।

खुत्बे के अंत में, मौलाना ने ईरान के पवित्र शहर मशहद में इमाम अली रज़ा (अ.स.) की पवित्र दरगाह में विद्वानों पर एक तकफ़ीरी व्यक्ति द्वारा किए गए हमले की कड़ी निंदा की। चाकू से हमला किया गया लेकिन पूरी दुनिया चुप रही। लेकिन जब यूरोप या किसी अन्य देश में एक पागल आदमी पर चाकू से हमला किया जाता है, तो पूरी दुनिया निंदा करती है और विरोध करने के लिए सड़कों पर उतरती है। दोहरे मानदंड बने रहेंगे। मानवता की रक्षा संभव नहीं है।

नमाज के दौरान, नमाज़ीयो ने प्रिय मातृभूमि में शांति और व्यवस्था के साथ-साथ दुनिया में अशांति के अंत के लिए दुआ की।

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि मौलाना सैयद क्लबे जवाद नकवी बीमारी के चलते जुमे की नमाज का नेतृत्व नहीं कर रहे हैं।

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