۱ آذر ۱۴۰۳ |۱۹ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 21, 2024
मौलाना मुमताज हुसैन

हौज़ा / तन्ज़ीमुल मकातिब के उपाध्यक्ष ने कहा कि अगर यह भावना किसी व्यक्ति में पैदा हो जाए, तो वह हुर बन जाता है। यह त्रुटि का एहसास ही था जिसने जनाबे हूर को आज़ादी दिलाई, त्रुटि का एहसास खुशी की पहली मंजिल है।

हौज़ा न्यूड़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, तन्ज़ीमुल मकातिब के अंतर्गत मदरस-ए- अहलैबेत (अ.स.) की ओर से मदरसा और इमामबारगाहे अहलैबेत मुस्तफाबाद, दिल्ली में आयोजित दो दिवसीय धार्मिक शिक्षा सम्मेलन की पहली बैठक 20 मार्च को मग़रिब की नमाज़ के बाद आयोजित की गई। बैठक की शुरुआत मौलाना सैयद सफदर अब्बास साहिब फाजिल जामिया इमामिया ने पवित्र कुरान के पाठ से किया।

मकतबे इमामिया अकबरिया दिल्ली, मकतबे इमामिया जारचा, मकतबे इमामिया शास्त्री पार्क दिल्ली, मकतबे इमामिया अलामुल हुदा मेमन सादात और मकतबे इमामिया अहलैबेत मुस्तफाबाद दिल्ली के बच्चों ने शैक्षिक प्रदर्शन प्रस्तुत किए। श्री सलमान सिरसवी साहब और श्री आसिफ जलाल साहब ने अहलुल बेत (अ.स.) के दरबार में भक्ति की भावना प्रस्तुत की। मौलाना अली हैदर गाजी साहब ने कहा कि खतीब एक डॉक्टर की तरह हैं, इसलिए ऐसे प्रचारकों को आमंत्रित करें और सुनें जो समाज में फैली बीमारियों का इलाज जानते हो।

बैठक के अंत में एक शोक समारोह आयोजित किया गया था। जिसमें तन्ज़ीमुल मकातिब के उपाध्यक्ष मौलाना मुमताज़ अली साहब ने पवित्र पैगंबर (स.अ.व.व.) की प्रसिद्ध हदीस सुनाई "हुसैन मुझसे है और मैं हुसैन से हूँ।" उन्होंने कहा कि यह बैठक अपनी तरह की एक अनूठी बैठक है। भाषण देकर दर्शकों से प्रशंसा प्राप्त करना आसान है, लेकिन छोटे बच्चों को गोद में बैठाकर शिक्षा देना मुश्किल है। आपने अभी-अभी बच्चों के शैक्षिक प्रदर्शनों को देखा है। यह मकतबे इमामिया की शिक्षा हैं।

तन्ज़ीमुल-मकतीब के उपाध्यक्ष ने सुनाया कि एक आदमी इमाम हुसैन (अ.स.) की सेवा में आया और कहा, "मैं खुद को पाप करने से रोक नहीं सकता। मुझे क्या करना चाहिए?" तब इमाम हुसैन (अ.स.) ने कहा कुछ बातो का ख्याल रखो फिर तुम जो चाहो वो पाप करो, अल्लाह का दिया हुआ रिज़्क़ न खाओ, फिर जो चाहो पाप करो, अल्लाह की हकूमत से बाहर निकल जाओ फिर जो चाहो पाप करो, मलकुल मौत (यमराज) जब तुम्हारे प्राण लेने आए तो उन्हे मना कर देना, फिर जो कुछ भी तुम चाहते हो पाप करो, पुनरुत्थान (क़यामत) के दिन जब तुम्हें नरक में ले जाया जाए तो जाने से इंकार कर दो। यदि तुम यह कर सकते हो, तो पाप करो, अन्यथा नहीं। " यदि यह भावना किसी व्यक्ति में पैदा होती है, तो वह हुर बन जाता है। यह त्रुटि की भावना ही थी जिसने हूर को मुक्ति दिलाई। त्रुटि की भावना खुशी की पहली मंजिल है।

मौलाना एजाज़ हुसैन साहब, इंस्पेक्टर, तन्ज़ीम-उल-मकतीब ने सम्मेलन का संचालन किया।

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