हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,यह तराना आज कल ईरान के स्कूली बच्चों में बहुत ज़्यादा मक़बूल हो रहा हैं,इस क्लिप में ईरान के यज़द शहर के हज़ारों स्कूली बच्चे और उनके पैरेंट्स तराना पढ़ते देखे जा सकते हैं बच्चे इस तराने को बहुत ही श्रद्धा से पढ़ते हैं।
इस तराने को पढ़ते वक़्त शौक़े नुसरते इमामे ज़माना (अ) में बच्चों के आंसू निकल आते हैं। इन आंसुओं को साम्राज्य शक्तियां और दज्जाली (इल्लुमिनाति) कठपुतलियां अपने लिए ख़तरे की घंटी समझने लगी हैं।
कला का कमाल ही यह है कि यह समाज को दिशा देने में बहुत कारगर होती है।
इस तराने को हुज्जतुल इस्लाम सईद नईमी ने लिखा है और मशहूर नौहा ख़्वान व मनक़बत ख़्वान "अबूज़र रुही" ने पढ़ा है।
इस तराने का हिंदी तर्जुमा। जो कि "हिंदी Khamenai" की एक क्लिप के सबटाइटल्स से लिया है जिसमें कहीं कहीं तब्दीली भी की है।
तर्जुमा यह है।
ऐ मेरे इश्क़! ऐ मेरी जान! मेरे इमामे ज़माना।
यह दुनिया आपके बग़ैर बे म`आनी है।
मेरी ज़िन्दगी के इश्क़ जब आप हो, तो मेरी दुनिया बहार जैसी है।
सलाम ऐ कमांडर! इस बाक़ी रह जाने वाली ग़य्यूर नस्ल की तरफ़ से सलाम।
सैय्यद अली 1390 हिजरी शम्सी के बच्चों को आवाज़ दे रहे हैं।
आ जाएं ऐ मेरे दिलबर आ जाएं आपका मददगार बन जाऊंगा।
आपके मुहिब्बों में से होंगा आपके इश्क़ में गिरफ़्तार हो जाऊंगा।
आपका अली बिन महज़ियार बन जाऊंगा
इसी अपने छोटे क़द के साथ मैं ख़ुद आपका सिपहसालार बन जाऊंगा।
सलाम ऐ कमांडर! इस बाक़ी रह जाने वाली ग़य्यूर नस्ल की तरफ़ से सलाम।
सैय्यद अली 1390 हिजरी शम्सी के बच्चों को आवाज़ दे रहे हैं।
मेरे छोटे क़द को न देखें ! जब वक़्त पड़ेगा तो आपके लिए क़याम करुंगा।
मेरे छोटे क़द को न देखें ! मिर्ज़ा कूचिक की तरह काम को अंजाम तक पहुंचाऊंगा।
मेरे छोटे क़द को न देखें ! 313 अस्हाब की सफ़ में शामिल होकर आपको सलामी दूंगा।
मेरी कमसिनी को न देखें ! इन छोटे हाथों से हमेशा आपके लिए दुआ करता हूं।
मेरी कमसिनी को न देखें मेरे मां बाप आप पर कुर्बान, सबको आप पर कुर्बान कर दूंगा।
सलाम ऐ कमांडर! इस बाक़ी रह जाने वाली ग़य्यूर नस्ल की तरफ़ से सलाम।
सैय्यद अली 1390 हिजरी शम्सी के बच्चों को आवाज़ दे रहे हैं।
अहद करता हूं कि एक दिन आपके काम आऊंगा।
अहद करता हूं कि हाज क़ासिम बन जाऊंगा।
अहद करता हूं कि बहजत और गुमनाम सिपाहियों की तरह आपका ख़ादिम बन जाऊंगा।
ऐ काश! हाज क़ासिम की तरह आपकी निगाहे करम के ज़ेरे साया आ जाऊं।
एक हज़ार साल से ज़्यादा गुज़र गये हैं तमाम आलम महदी (अज) की तलाश में है।
सिपाहियों की फ़िक्र न करें ऐ मौला।
आपके सिपाही यह 1400 हिजरी शम्सी के बच्चे हैं।
सलाम ऐ कमांडर! इस बाक़ी रह जाने वाली ग़य्यूर नस्ल की तरफ़ से सलाम।
सैय्यद अली 1390 हिजरी शम्सी के बच्चों को आवाज़ दे रहे हैं।