हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इस रिवायत को "मन ला यहज़रूल फाकिह " पुस्तक से लिया गया है। इस कथन का पाठ इस प्रकार है:
:قال رسول الله صلی الله علیه وآله وسلم
ثَمانِيةٌ اِنْ اُهينُوا فَلا يَلُومُوا اِلاّ اَنْفُسَهُمْ: اَلذّاهِبُ اِلى مائِدَةٍ لَمْ يُدْعَ اِلَيْها، وَ الْمُتأمِّرُ عَلى رَبِّ الْبَيْتِ، وَطالِبُ الْخَيْرِ مِنْ اَعْدائِهِ، وَ طالِبُ الْفَضْلِ مِنَ اللِّئامِ، وَ الدّاخِلُ بَيْنَ اَثْنِيْنِ فى سرٍّ لَمْ يُدْخِلاهُ فيهِ، وَالْمُسْتَخِفُّ بِالسُّلطانِ، وَالجالِسُ فىمَجْلِسٍ لَيْسَ لَهُ بِاَهْلٍ وَالْمُقْبِلُ بِالْحَديثِ عَلى مَنْ لايَسْمَعُ مِنْهُ.
हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व. ने फरमाया:
आठ ऐसे लोगों का अपमान हो तो उन्हें किसी और को नहीं बल्कि खुद को दोष देना चाहिए
(1) जो ऐसी जगह मोहमान बने या ऐसे दस्तरखान पर बैठे जहां इससे दावत ना दी गई हो
(2)वह मोहमान जो घर में आदेश दे किसी काम को करने के लिए
(3)जो अपने दुश्मनों से अच्छा की उम्मीद करें
(4)जो नीच लोगों से दया की अपेक्षा रखता है।
(5)जो दो व्यक्तियों के बीच उनके गुप्त मामलों में हस्तक्षेप करें उन्होंने इसे अपने रहस्य से छिपा रखा हो।
(6)जो हुकुमत को कम महत्वपूर्ण और कमजोर समझें
(7)वह व्यक्ति जो ऐसी जगह बैठता है जो उसके योग्य ना हों,
(8)जो अपनी बात को ऐसे व्यक्ति को बताएं जिसकी बात को महत्त्व ना देता हो
मन ला यहज़रूल फाकिह,भाग 4,पेज 355