۱ آذر ۱۴۰۳ |۱۹ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 21, 2024
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हौज़ा/यातीमों पर मेहरबान और मुहब्बते कुरआन करीम का एलान भी हैं और रसूल व आले रसूल अ.स.का फरमान भी,कुरआन करीम की कई आयात में अल्लाह तआला ने यातीमों के साथ हूसने सोलुक का हुक्म दिया हैं।कुछ आयते पेश करते हैं

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,यातीमों पर मेहरबान और मुहब्बते कुरआन करीम का एलान भी हैं और रसूल व आले रसूल अ.स.का फरमान भी,कुरआन करीम की कई आयात में अल्लाह तआला ने यातीमों के साथ हूसने सोलुक का हुक्म दिया हैं।कुछ आयते पेश करते हैं

(1)فَأَمَّا الْيَتِيمَ فَلَا تَقْهَرْ

इसलिए अनाथ पर क्रोध न करो। (सूरह ज़ुहा, आयत 9)
(2)أَرَأَيْتَ الَّذِي يُكَذِّبُ بِالدِّينِ۔ فَذَٰلِكَ الَّذِي يَدُعُّ الْيَتِيمَ’’
क्या तुमने उस शख्स को देखा है जो क़यामत के दिन को झुठलाता है? वही अनाथ को धकेलता है। (सूरह माउन, आयत 1,2)
(3)وَلَا تَقْرَبُوا مَالَ الْيَتِيمِ إِلَّا بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ حَتَّىٰ يَبْلُغَ أَشُدَّهُ ۚ وَأَوْفُوا بِالْعَهْدِ ۖ إِنَّ الْعَهْدَ كَانَ مَسْئُولًا’’
किसी अनाथ के माल के पास न जाओ, सिवाय इसके कि सबसे अच्छे तरीके से जब तक वह मजबूत नहीं हो जाता और अपने कर्तव्यों को पूरा नहीं कर लेता कर्ण की प्रतिज्ञा पर सवाल उठाया,
जाएगा। (सूरह इसरा, आयत 34)
(4)وَأَمَّا إِذَا مَا ابْتَلَاهُ فَقَدَرَ عَلَيْهِ رِزْقَهُ فَيَقُولُ رَبِّي أَهَانَنِ۔ كَلَّا ۖ بَل لَّا تُكْرِمُونَ الْيَتِيمَ’’
और जब उसने परीक्षण के लिए भोजन तैयार किया तो कहा मेरे रब ने मेरा अपमान किया है। ऐसी बात नहीं है, परन्तु आप अनाथों का आदर नहीं करते। (सूरह फज्र, आयत 16, 17)

आयतो में अल्लाह तआला ने स्पष्ट कर दिया है कि सावधान! यतीम पर नाराज़ न हो, धक्का न दे और जो यतीम को धक्का दे, वह क़ियामत के दिन को झुठलाने वाला है। विश्वासघात की नियत से किसी अनाथ की संपत्ति को न छूएं अनाथों का मान सम्मान ही जीविका की वृद्धि का कारण है।

हज़रत पैगंबर मुहम्मद (स.ल.व.) ने अपने शब्दों और कार्यों से अनाथों के साथ अच्छा व्यवहार करना सिखाया पवित्र पैगंबर के बाद, पवित्र पैगंबर के सच्चे उत्तराधिकारी, अमीरुल मोमिनीन, अ.स. ने इस संबंध में पवित्र पैगंबर के मिशन को जारी रखा, जब तक कि अशकी अलअवलीन और अंतिम, अब्दुल रहमान बिन मुल्जुम धन्य अंतर पर तलवार चलायी और वह शहीद हो गया। उनके अनाथ होने की घटनाएँ किताबों और हदीसों में प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं, चार परंपराएँ उदाहरण के रूप में नीचे प्रस्तुत की गई हैं।

1. एक रात हज़रत अली अ.स. अपने गुलाम जनाब कंबर के साथ एक गरीब औरत के घर के पास से गुजरे तो क्या देखा कि वह गरीब औरत चूल्हे पर पानी से भारा बरतन चढ़ा रही है और अपने यतीम बच्चों से कह रही है कि खाना पक जाए तो तुम्हें खिलाते हैं वह यातीम बच्चे भूख से तड़प रहे थे हजरत अली ने इस मंजर को देखा तो तड़प गए फौरन अपने गुलाम के साथ घर गए और खजूर की टोकरी आटे की बोरी तेल चावल और रोटी कंधे पर उठाकर लाते हैं और औरत के घर पहुंचते हैं जनाबे कंमबर ने चाहा कि वह सामान खुद उठा तो हज़रत हजरत अली ने उन्हें मना कर दिया,

जब मौला उस औरत के घर के दरवाजे पर पहुंचे दरवाजा खटखटाया और घर में आने की इजाजत मांगी घर में दाखिल हुए थोड़ा चावल और तेल इस देग में डाला जब खाना तैयार हो गया तो हज़रत अली ने इन यतीम बच्चों को अपने हाथों से खिलाए
खाना खाने के बाद वह बच्चे हंसने लगे और खेलने लगे तो हज़रत अली भी खुश हो गए और इनको अल्लाह ताला की हिफाजत करें घर से बाहर आ गए और जनाबे कंबर से फरमाया जब मैं घर में दाखिल हुआ तो बच्चे भूख से रो रहे थे और जब मैं इसे जुदा हुआ तो वह सेराब हो गए और खुश हो गए(कशपुल याकीन पेज 115)

इस्लाम में इस तरीके के वाक्य बहुत मौजूद है अली ने बहुत सारे बच्चों की सरपरस्ती की और उनकी तरबीयत की और लोगों को भी यही दरस दिया कि या यातिमों की खिदमत की जाए और उनके साथ रहम से पेश आया जाए,

लेखक: मौलाना सैय्यद अली हाशिम आबिदी

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