۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024
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5 फ़रवरी 2024 - 19:34
امام

हौज़ा/हज़रत इमाम काज़िम अ.स. को हारून के हुक्म के बाद सन् 179 हिजरी में गिरफ़्तार किया गया और सन् 183 हिजरी में शहीद कर दिया गया था, आप बग़दाद और बसरा की जेलों में ईसा इब्ने जाफ़र, फ़ज़्ल इब्ने रबीअ, फ़ज़्ल इब्ने यह्या और सिंदी इब्ने शाहक की निगरानी में रहे, इमाम काज़िम अ.स. ने 14 साल ज़िंदगी के बहुत कठिन परिस्तिथियों का सामना किया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत इमाम काज़िम अ.स. को हारून के हुक्म के बाद सन् 179 हिजरी में गिरफ़्तार किया गया और सन् 183 हिजरी में शहीद कर दिया गया था, आप बग़दाद और बसरा की जेलों में ईसा इब्ने जाफ़र, फ़ज़्ल इब्ने रबीअ, फ़ज़्ल इब्ने यह्या और सिंदी इब्ने शाहक की निगरानी में रहे, इमाम काज़िम अ.स. ने 14 साल ज़िंदगी के बहुत कठिन परिस्तिथियों का सामना किया।

ईसा इब्ने जाफ़र

बसरा के इस हाकिम ने हारून के हुक्म से इमाम अ.स. को एक साल अपनी निगरानी में रखा, लेकिन ईसा इब्ने जाफ़र इमाम अ.स. पर सख़्ती नहीं करता था, जिन दिनों इमाम अ.स. ईसा इब्ने जाफ़र की निगरानी में थे हारून ने उसे ख़त लिखा कि इमाम अ.स. को क़त्ल कर दे, ईसा ने अपने कुछ क़रीबी लोगों से मशविरा किया और उन लोगों ने इस जुर्म को अंजाम देने से उसे रोक दिया जिसके बाद ईसा ने हारून को ख़त का जवाब इस तरह लिखा कि मूसा इब्ने जाफ़र (इमाम काज़िम अ.स.) को मेरी निगरानी में क़ैद किए हुए काफ़ी समय बीत चुका है मैंने इतने समय में कई जासूसों द्वारा पता लगाया लेकिन हर बार हमारे जासूस यही ख़बर लाते कि इमाम अ.स. इबादत से थकते ही नहीं हैं वह केवल अल्लाह की इबादत करते रहते हैं और वह अपने लिए मग़फ़ेरत और रहमत के अलावा कोई दुआ नहीं करते, इसलिए अगर किसी को इन्हें मेरे पास से लेने भेजते हो तो ठीक वरना मैं उनको आज़ाद कर दूंगा क्योंकि मैं उन्हें क़ैद में रख कर ख़ुद बहुत परेशान हो गया हूं।

फ़ज़्ल इब्ने रबीअ

ईसा इब्ने जाफ़र इब्ने मंसूर के ख़त से हारून बौखला गया क्योंकि उसे डर था कि कहीं ईसा उनको रिहा न कर दे जिससे उसकी सारी साज़िशें बेकार हो जाएं, इसीलिए उसने अपने किसी आदमी को भेज कर इमाम अ.स. को बसरा से बग़दाद बुला कर फ़ज़्ल इब्ने रबीअ की निगरानी में क़ैद कर दिया, शैख़ मुफ़ीद र.ह. अपनी किताब अल-इरशाद में लिखते हैं कि इमाम काज़िम अ.स. काफ़ी समय फ़ज़्ल की जेल में रहे और इस बीच हारून ने कई बार फ़ज़्ल से इमाम अ.स. को मार देने को कहा लेकिन फ़ज़्ल हर बार किसी न किसी बहाने से हारून को मना कर देता था, फ़ज़्ल ने अब्दुल्लाह क़रवी से अपनी एक मुलाक़ात में कहा भी कि मुझ से हारून ने कई बार इमाम अ.स. को मारने का दबाव बनाया लेकिन मैं किसी क़ीमत पर उसका यह काम नहीं कर सकता चाहे मुझे अपनी जान ही क्यों न देनी पड़ जाए।

फ़ज़्ल इब्ने यह्या

तीसरी वह जगह जहां इमाम अ.स. को क़ैद में रखा गया वह फ़ज़्ल इब्ने यह्या का एक घर था, इब्ने शहर आशोब लिखते हैं कि जैसे ही इमाम काज़िम अ.स. को फ़ज़्ल के हवाले किया गया उसने तभी से इमाम अ.स. का सम्मान और अच्छे से पेश आना शुरू कर दिया था, और भी कुछ लोगों ने लिखा है कि इमाम अ.स. फ़ज़्ल के घर बहुत आराम से रह रहे थे और वह इमाम अ.स. की बहुत इज़्ज़त करता था तभी यह ख़बर हारून के पास पहुंच गई उसने इस ख़बर की सच्चाई का पता लगाने के लिए अपने जासूसों को भेजा, जैसे ही जासूसों ने इस ख़बर की पुष्टी की हारून ग़ुस्से से तिलमिला गया और उसने उसी समय सिंदी इब्ने शाहक और अब्बास इब्ने मोहम्मद को हुक्म दिया कि सौ कोड़े फ़ज़्ल को मारे जाएं।

सिंदी इब्ने शाहक

हारून पिछले तीनों हाकिमों के रवैये से मायूस हो चुका था इसलिए उसने इमाम अ.स. को एक नजिस और बहुत ही हिसंक स्वभाव के इंसान सिंदी इब्ने शाहक के हवाले किया, सिंदी हर बाच हारून की आंख बंद कर के सुनने वाला इंसान था, यह अपने जेल में सभी क़ैदियों पर तरह तरह के ज़ुल्म करता और कभी कभी तो इमाम अ.स. पर भी आम क़ैदियों जैसा ज़ुल्म करता, इमाम काज़िम अ.स. ने इस जेल में बहुत तकलीफ़ झेलीं और आपको बहुत ज़्यादा जिस्मानी और रूहानी दोनों तकलीफ़ दी गईं, इमाम अ.स. अपनी उम्र की आख़िरी सांस भी हथकड़ियों और बेड़ियों में गुज़ारी, हारून ने इमाम अ.स. को मानसिक तकलीफ़ देने के लिए जेल में बद किरदार औरत भेजी ताकि इमाम अ.स. का ध्यान अल्लाह की इबादत से हट कर उस औरत की ओर चला जाए लेकिन इतिहास में उस औरत का बयान दर्ज है कि उसके न केवल हर हथकंडे नाकाम हुए बल्कि वह इमाम अ.स. की इबादत से प्रभावित हो कर इमाम अ.स. के साथ जेल में ही इबादत करने लगी।

इमाम अ.स. की शहादत

आख़िरकार हारून ने इमाम काज़िम अ.स. को अपने रास्ते से हटाने के लिए सिंदी इब्ने शाहक को किसी भी तरह इमाम अ.स. को ज़हर हुक्म दिया, सिंदी ने हारून के हुक्म को मानते हुए इमाम अ.स. के खाने में ज़हर मिला दिया, कुछ लोगों ने लिखा है कि खजूर के दाने में ज़हर मिला कर खाने को पेश किया इमाम अ.स. ने दस खजूर के दाने खाने के बाद हाथ रोक लिया, सिंदी ने इमाम अ.स. से और खाने को कहा, इमाम अ.स. ने कहा तूने अपना काम कर दिया है और तूझे जिस काम का हुक्म दिया गया था वह तूने कर दिया अब और मुझे नहीं खाना है।

वह इमाम अ.स. को ज़हर देने के बाद 80 बुज़ुर्ग लोगों को इमाम अ.स. के पास लाया और हर एक से पूछता कि देखो मूसा इब्ने जाफ़र (अ.स.) को भला कोई तकलीफ़ पहुंचाई है क्या मैने? लेकिन इमाम अ.स. ने कहा ऐ लोगों जो कहा इसने वह ठीक है लेकिन मुझे ज़हर दिया गया है जिसके कारण कल मेरा चेहरा ज़हर के असर से हरा हो जाएगा और परसों मैं इस दुनिया से चला जाऊंगा।

और फिर क़यामत का वह दिन भी आ गया जब इमाम काज़िम अ.स. 25 रजब (कुछ रिवायत के अनुसार 5 रजब) सन् 183 हिजरी को हारून अब्बासी के हुक्म से सिंदी द्वारा दिए गए असर से शहीद हो गए, इमाम अ.स. के जनाज़े को बहुत ही मज़लूमियत के साथ बग़दाद के पुल पर रख दिया गया, फिर इमाम अ.स. के चाहने वाले शियों ने हारून के चचा सुलैमान इब्ने जाफ़र की सिफ़ारिश से उसे पुल से उठा कर शियों के बीच ले कर आए।

शैख़ क़ुम्मी र.ह. ने शैख़ सदूक़ र.ह. से रिवायत नक़्ल की है कि इमाम अ.स. के जनाज़े को शहादत के बाद हारून ने ऐसी जगह रखवाया जहां उसके हाकिम और सिपाही रहते थे और फिर चार लोगों को भेज कर पूरे शहर में ख़बर जिसे मुसा इब्ने जाफ़र (अ.स.) को देखना हो वह घर से बाहर निकल आए, उसी इलाक़े में हारून के चचा सुलैमान का घर था लोगों के शोर से वह भी घर से बाहर निकल आए जैसे ही देखा पैग़म्बर स.अ. के जनाज़े को किराए के मज़दूर उठाए हुए हैं

तुरंत अपने सर से अम्मामा फेका गरेबान चाक कर दिया और नंगे पांव दौड़े और ग़ुलामों को हुक्म दिया इन मज़दूरों से कहो ख़बरदार इमाम अ.स. का जनाज़ा यहीं रख दें, फिर उन्होंने आवाज़ दी कि जिसको पाक बाप के पाक बेटे का दीदार करना हो वह आए, उसके बाद चाहने वालों की भीड़ जमा हो गई और लोगों की अपने इमाम अ.स. की जुदाई में रोने की चीख़ें बुलंद हो गईं इसके बाद इमाम अ.स. को ग़ुस्ल और कफ़न देने के बाद दफ़्न कर दिया गया।
 

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