हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस की पूर्व संध्या पर शायरों और फ़ारसी ज़बान के उस्तादों और साहित्यकारों से सोमवार की रात मुलाक़ात की।
इस मुलाक़ात में, अयातुल्लाहिल उज़मा सैयद अली खामेनेई ने फ़ारसी शेरों की निरंतर प्रगति और उसके शिखर पर पहुंचने को संतोष जनक क़रार दिया और शेर को मीडिया वॉर के दौर में एक अहम व प्रभावी मीडिया बताते हुए कहा कि इस मैदान में एक ताक़तवर, प्रभावी और ठोस मीडिया की हैसियत से फ़ारसी शेर व साहित्य की मूल्यवान विरासत से बेहतरीन तरीक़े से फ़ायदा उठाया जाना चाहिए।
सुप्रीम लीडर का कहना था कि उचित व लाभदायक संदेश के चयन को शेर के प्रभाव और उसके बाक़ी रहने की शर्त बताते हुए कहा कि शेर के मीडिया को धर्म, अख़लाक़, शिष्टाचार, संस्कृति और ईरानी परंपरा के पैग़ाम को पहुंचाना चाहिए।
फ़ारसी शायरों, कवियों और सहित्यकारों से मुलाक़ात
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने विश्व के मुंहज़ोरों के ज़ुल्म व विस्तारवाद और उसके प्रतीकों यानी अमरीका और ज़ायोनियों के मुक़ाबले में ईरानी क़ौम के बहादुरी से भरे प्रतिरोध के संदेश को बेहतरीन व पहुंचाने के योग्य संदेश बताया और कहा कि ईरानी राष्ट्र के प्रतिरोध का संदेश और उसकी ओर से साम्राज्यवादियों के ख़िलाफ़ अपने दो टूक व ठोस नज़रिये का बयान बहुत अहम और दुनिया के लोगों में शौक़ पैदा करने वाला है और इन नज़रियों के स्वागत किए जाने के नमूने ईरानी राष्ट्राध्यक्षों के विदेशी दौरों और अवामी सभाओं में उनकी तक़रीरों के दौरान देखने में आए।
उन्होंने शायरों और फ़ारसी शायरी व साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि अच्छे शेर से विश्व जनमत को भी फ़ायदा पहुंचना चाहिए और इसके लिए अनुवाद का अभियान शुरू किया जाना चाहिए ताकि शेर को शायराना और प्रभावी गद्य की परिधि में दूसरों के सामने पेश किया जा सके।
सुप्रीम लीडर ने लोगों की साहित्यिक स्मृति को मज़बूत बनाने और युवाओं के दिमाग़ और मन को कविताओं के सही और अच्छे उपयोग में रचनात्मक बनाने तथा बड़े शायरों और कवियों की काव्य रचनाओं का अध्ययन करने और उससे सीखने की सिफ़ारिश की।
सुप्रीम लीडर ने इस बात पर खेद व्यक्त करते हुए कि विदेशी शब्दों के आने की वजह से फ़ारसी भाषा मज़लूम साबित हो रही है, सिफ़ारिश की कि इस मनमोहक और विकास योग्य भाषा का संरक्षण किया जाना चाहिए।
उनका कहना था कि इन हमलों के मुक़ाबले में फ़ारसी तत्सम शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए जो कभी-कभी अधिक सुन्दर और उपयोग में आसान होते हैं तथा विदेशी शब्दों को कम करके फ़ारसी भाषा की शुद्धता बढ़ाई जानी चाहिए।
इस मुलाक़ात के आग़ाज़ में इमाम हसन अलैहिस्सलाम और इमाम महदी अलैहिस्सलाम की शान सहित ग़ज़ा की जनता ख़ास तौर पर ग़ज़ा के बच्चों और औरतों की मज़लूमियत, माँ - बाप की प्रशंसा और इसी तरह कुछ राजनैतिक व सामाजिक विषयों पर शेर पढ़े गए।
इस मुलाक़ात से पहले सुप्रीम लीडर की इमामत में मग़रिब और इशा की नमाज़े जमाअत से अदा की गयी।