۲۴ شهریور ۱۴۰۳ |۱۰ ربیع‌الاول ۱۴۴۶ | Sep 14, 2024
इत्रे क़ुरआन

हौज़ा / यह कविता हमें इस दुनिया की नश्वरता और क्षणभंगुर स्थिति को समझने और इसके बाद की तैयारी पर ध्यान केंद्रित करना सिखाती है। एक मुसलमान को इस सांसारिक जीवन के अस्थायी सुखों से दूर नहीं जाना चाहिए, बल्कि उसके बाद की सफलता को प्राथमिकता देनी चाहिए।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم    बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम

ذَٰلِكَ مَتَاعُ ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَا ثُمَّ مَأۡوَىٰهُمۡ جَهَنَّمُۖ وَبِئۡسَ ٱلۡمِهَادُ   ज़ालेका मताउल हयातिद दुनिया सुम्मा मवाहुम जहन्नम व बेअसल मिहाद (आले-इमरान, 197)

अनुवाद: यह इस संसार के जीवन का अस्थायी लाभ है, इसके बाद उनका निवास नरक है और वह बहुत बुरा निवास है।

विषय:

इस आयत में इस सांसारिक जीवन की वास्तविकता और उसके अंत और उसकी तुलना में आख़िरत की सज़ा का उल्लेख किया गया है।

पृष्ठभूमि:

सूर ए आले-इमरान की यह आयत बहुदेववादियों और अविश्वासियों को सांसारिक जीवन के प्रति उनके प्रेम और उसके पीछे भागने के लिए निंदा करती है। इसमें इस लोक के जीवन को अनित्य और परलोक को वास्तविक बताया गया है। इस आयत के अवतरण का उद्देश्य मुसलमानों को सांसारिक जीवन की वास्तविकता समझाना और आख़िरत की तैयारी की ओर ध्यान आकर्षित करना था।

तफ़सीर:

  1. सांसारिक जीवन की वास्तविकता: इस आयत में, अल्लाह ताला सांसारिक जीवन को "अस्थायी लाभ" के रूप में वर्णित करता है, जिसका अर्थ है कि सांसारिक धन, आराम और सुख सभी अस्थायी हैं। मनुष्य को इन नश्वर वस्तुओं में उलझकर अपनी वास्तविक मंजिल अर्थात् परलोक को नहीं भूलना चाहिए।
  2. आख़िरत की प्राथमिकता: यह आयत हमें याद दिलाती है कि सांसारिक जीवन की चाह में आख़िरत की उपेक्षा करने से व्यक्ति नरक में जा सकता है, जो बहुत बुरा निवास है। इसलिए, आस्तिक को अपने जीवन में आख़िरत की रोशनी में निर्णय लेना चाहिए और उसके लिए तैयार रहना चाहिए।
  3. अंत की चेतना: श्लोक में जिस तरह नरक का उल्लेख किया गया है वह एक कड़ी चेतावनी है कि व्यक्ति को इस दुनिया के अस्थायी सुखों की कीमत पर परलोक की शाश्वत सजा से बचने की कोशिश करनी चाहिए।
  4. कर्मों का सुधार: सांसारिक जीवन की वास्तविकता को जानकर मनुष्य को अपने कर्मों को सुधारना होगा और उन्हें परलोक के मानकों के अनुरूप बनाना होगा ताकि वह नरक की सजा से बच सके।
  5. परलोक में सफलता: वास्तविक सफलता वही है जो परलोक में प्राप्त होती है और यह इस संसार में किये गये कर्मों पर निर्भर करती है। इसलिए, हमें अपने कार्यों की समीक्षा करनी चाहिए और उन्हें ईश्वर की इच्छा के अनुरूप ढालना चाहिए।

परिणाम:

यह श्लोक हमें इस संसार की नश्वरता और नश्वरता को समझना और परलोक की तैयारी पर ध्यान केंद्रित करना सिखाता है। एक मुसलमान को इस सांसारिक जीवन के अस्थायी सुखों से दूर नहीं जाना चाहिए, बल्कि उसके बाद की सफलता को प्राथमिकता देनी चाहिए।

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तफ़सीर राहनुमा, सूर ए आले-इमरान

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