गुरुवार 26 दिसंबर 2024 - 06:42
इस्लाम में शोध और सावधानी का महत्व

हौज़ा/ यह आयत ईमानवालों को याद दिलाती है कि जिहाद या किसी भी कार्य में जल्दबाजी और सांसारिक लालच के बजाय अनुसंधान, न्याय और अल्लाह के निर्देशों का पालन करना चाहिए। इस्लाम की सच्ची भावना मानवता, करुणा और तथ्य-आधारित निर्णय में निहित है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم    बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِذَا ضَرَبْتُمْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ فَتَبَيَّنُوا وَلَا تَقُولُوا لِمَنْ أَلْقَىٰ إِلَيْكُمُ السَّلَامَ لَسْتَ مُؤْمِنًا تَبْتَغُونَ عَرَضَ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا فَعِنْدَ اللَّهِ مَغَانِمُ كَثِيرَةٌ ۚ كَذَٰلِكَ كُنْتُمْ مِنْ قَبْلُ فَمَنَّ اللَّهُ عَلَيْكُمْ فَتَبَيَّنُوا ۚ إِنَّ اللَّهَ كَانَ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرًا   या अय्योहल लज़ीना आमनू इज़ा ज़रबतुम फ़ी सबीलिल्लाहे फ़तबय्यनू वला तकूलू लेमन अलक़ा इलैकोमुस सलामा लस्ता मोमेनन तबतग़ूना अर्ज़ल हयातिद दुनिा फ़इंदल्लाहे मग़ानेमो कसीरतुन कज़ालेका क़ुनतुम मिन कब़लो फ़मन्नल्लाहा अलैकुम फ़तबय्यून इन्नल्लाहा काना बेमा तअमलूना ख़बीरा (नेसा 94)

अनुवाद: ईमानवालों, जब तुम ईश्वर के नाम पर जिहाद के लिए यात्रा करो तो पहले शोध कर लो और सावधान रहो कि इस्लाम पेश करने वाले से यह न कहो कि तुम मोमिन नहीं हो, इस तरह तुम चंद दिनों की पूंजी चाहते हो ज़िंदा दुनिया और ख़ुदा के फ़ायदे बहुत हैं - आख़िर आप भी पहले काफ़िर थे - ख़ुदा ने आपका इस्लाम कबूल करके (और दिल तोड़ने की शर्त न बनाकर) आप पर एहसान किया है, इसलिए अब आप भी कोई कदम उठाने से पहले शोध कर लें। वह ईश्वर आपके कार्यों से भलीभांति परिचित है है

विषय:

इस्लाम में अनुसंधान और न्याय: अतीत की याद और सांसारिक लालच की निंदा

पृष्ठभूमि:

यह आयत मुसलमानों को जिहाद के दौरान व्यवहार और नैतिकता के संबंध में मार्गदर्शन प्रदान करती है। यह विशेष रूप से उस समय की स्थिति को संदर्भित करता है जब मुसलमानों को विभिन्न समूहों और व्यक्तियों से निपटना पड़ता था, और कुछ अवसरों पर गलतफहमी या सांसारिक लालच के कारण अन्यायपूर्ण निर्णय लिए जा सकते थे।

तफ़सीर:

1. शोध की प्रेरणा: अल्लाह ने ईमानवालों को आदेश दिया कि जब वे अल्लाह की राह में यात्रा करें तो किसी के विश्वास को अस्वीकार करने से पहले शोध करें।

2. इस्लाम का सम्मान करने की जरूरत: अगर कोई इस्लाम का इजहार करता है तो उसे आस्तिक न मानने का कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि आस्था दिखावे से आंकी जाती है।

3. सांसारिक लालच की निंदा: यह आयत सांसारिक हितों की इच्छा की निंदा करती है और हमें याद दिलाती है कि अल्लाह के पास महान पुरस्कार हैं।

4. अतीत की याद: अल्लाह ने ईमानवालों को याद दिलाया कि वे भी कभी अविश्वासी थे, और अल्लाह की कृपा से ईमान लाए थे। यह उन्हें दूसरों के प्रति दया और नम्रता दिखाने का आग्रह करता है।

5. अल्लाह की जागरूकता: आयत इस चेतावनी के साथ समाप्त होती है कि अल्लाह हर कार्य से अवगत है, और किसी भी अन्याय या जल्दबाजी को स्वीकार नहीं करता है।

महत्वपूर्ण बिंदु:

• दूसरों की आस्था पर सवाल उठाने से पहले शोध जरूरी है।

• सांसारिक लाभ के लिए गलत निर्णय न लें।

• अल्लाह का इनाम सांसारिक हितों से कहीं अधिक बड़ा है।

• अतीत को याद करके कृतज्ञता और नम्रता दिखाएं।

• अल्लाह की जागरूकता की चेतना मनुष्य को नैतिक और धर्मी बनाए रखती है।

परिणाम:

यह आयत मोमिनों को जिहाद या किसी भी कार्य में जल्दबाजी और सांसारिक लालच के बजाय अनुसंधान, न्याय और अल्लाह के निर्देशों का पालन करने की याद दिलाती है। इस्लाम की सच्ची भावना मानवता, करुणा और तथ्य-आधारित निर्णय में निहित है।

•┈┈•┈┈•⊰✿✿⊱•┈┈•┈┈•

सूर ए नेसा की तफसीर

टैग्स

आपकी टिप्पणी

You are replying to: .
captcha