हौज़ा न्यूज़ एजेंसी
بسم الله الرحـــمن الرحــــیم बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम
رَبَّنَا إِنَّكَ مَن تُدْخِلِ النَّارَ فَقَدْ أَخْزَيْتَهُ وَمَا لِلظَّالِمِينَ مِنْ أَنصَارٍ रब्बना इन्नका मन तुदखेलिन्नारा फ़क़द अज़यतहू वमा लिज़्ज़ालेमीना मिन अनसार (आले इमरान, 192)
अनुवाद: ऐ ख़ुदावन्द, अगर किसी ने उसे ज़लील और बदनाम किया तो तू उसे जहन्नम में डालेगा और ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं।
विषय:
यह कविता प्रार्थना के महत्व, नरक की सजा और गलत काम करने वालों की विफलता के विषयों पर प्रकाश डालती है।
पृष्ठभूमि:
सूर ए आले-इमरान मदनी एक सूरह है जिसका मुख्य विषय किताब के लोगों के साथ संवाद, विश्वासियों का मार्गदर्शन और विश्वासियों के दिलों में अल्लाह का डर जगाना है। यह आयत विश्वासियों की दुआ का हिस्सा है जिसमें वे अल्लाह से उन्हें नरक से बचाने के लिए कहते हैं। इस दुआ में वह कबूल करते हैं कि जो शख्स जहन्नम में जाएगा वह इस दुनिया और आखिरत में जरूर बदनाम होगा और ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं होगा।
तफ़सीर:
इस आयत में हमें नर्क से बचाने के लिए अल्लाह से पनाह मांगी गई है। विश्वास करने वाले मानते हैं कि यदि कोई व्यक्ति नर्क में प्रवेश करता है, तो वह निश्चित रूप से अपमानित होगा। यह एक संकेत है कि आख़िरत में सफलता और सम्मान केवल अल्लाह की आज्ञाकारिता और आज्ञाकारिता में है। दूसरी ओर, गलत काम करने वालों का कोई मददगार नहीं होगा क्योंकि उनका अंत बुरा होगा।
आयत में, "उत्पीड़कों" का तात्पर्य उन लोगों से है जो अल्लाह की आज्ञाओं का उल्लंघन करते हैं और लोगों पर अत्याचार करते हैं। ऐसे लोगों का कोई लौकिक अथवा पारलौकिक सहायक नहीं होगा।
परिणाम:
आयत का सार यह है कि ईमानवालों को अपने जीवन में अपने कर्मों के अंत की चिंता करते हुए अल्लाह की शरण लेनी चाहिए और ज़ालिमों के अंत से सीखना चाहिए क्योंकि आख़िरत में उनका कोई सहायक नहीं होगा। यह दुआ अल्लाह की सजा से बचने और उसकी दया की ओर मुड़ने का एक खूबसूरत उदाहरण है।
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तफ़सीर राहनुमा, सूर ए आले-इमरान