हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने बुधवार 25 सितम्बर 2024 की सुबह पवित्र डिफ़ेंस और रेज़िस्टेंस के मैदान में सक्रिय हज़ारों लोगों और सीनियर सैनिकों से मुलाक़ात में थोपी गई जंग की शुरुआत के कारणों पर रौशनी डालते हुए नई बात और कशिश को दुनिया पर शासन करने वाली भ्रष्ट व्यवस्था के मुक़ाबले में इस्लामी गणतंत्र के दो अहम तत्व क़रार दिया हैं।
उन्होंने कहा कि पवित्र डिफ़ेंस, देश की मूल्यवान रक्षा का कारनामा होने के साथ ही अल्लाह और धर्म की राह में जेहाद का भी डिफ़ेंस था जिसने इस्लाम को नई ज़िंदगी दी, ईरानी राष्ट्र को लोकप्रिय बनाया और देश में आध्यात्मिकता का माहौल पैदा किया।
उन्होंने फिलिस्तीन और लेबनान की हालिया घटनाओं को पवित्र डिफ़ेंस की घटनाओं की तरह और अल्लाह की राह में जेहाद का एक उदाहरण बताया और कहा कि फ़िलिस्तीन नामक एक इस्लामी देश पर दुनिया के सबसे दुष्ट काफ़िरों में से एक ने अवैध क़ब्ज़ा कर लिया है और निश्चित शरई हुक्म यह है कि सभी को फ़िलिस्तीन और मस्जिदुल अक़सा को उनके अस्ल मालिकों को लौटाने के लिए कोशिश करनी चाहिए।
इस्लामी क्रांति के नेता ने कहा कि लेबनान हिज़्बुल्लाह संगठन, जिसने ग़ज़ा के लिए अपने सीने को ढाल बना लिया है और दुखद घटनाओं का सामना कर रहा है, अल्लाह की राह में जेहाद की स्थिति में है।
उन्होंने थोपे गए आठ वर्षीय युद्ध से इस युद्ध की एक और समानता की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि इस जंग में काफ़िर और दुष्ट दुश्मन सबसे अधिक हथियारों और संसाधनों से लैस है और अमेरिका भी उसकी पीठ पर है और अमेरिकियों का यह दावा कि वे ज़ायोनीयों के कामों से अवगत नहीं हैं और इस संबंध में हस्तक्षेप नहीं कर रहे हैं, झूठ है। उन्हें जानकारी भी है, वे हस्तक्षेप भी कर रहे हैं और उन्हें ज़ायोनी शासन की जीत की ज़रूरत भी है।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने इस संबंध में आगे कहा कि अमेरिका की इसी वर्तमान सरकार को आगामी चुनावों के लिए यह दिखाने की ज़रूरत है कि उसने ज़ायोनी सरकार की मदद की है और उसे जीत दिलाई है, हालांकि उसे अमेरिकी मुसलमानों के वोट भी चाहिए इसी लिए वह यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि इसमें उसका कोई हाथ नहीं है।
अपने संबोधन के एक दूसरे हिस्से में उन्होंने सन 1980 में ईरानी राष्ट्र के ख़िलाफ़ युद्ध शुरू किए जाने की वजह बताते हुए कहा कि ईरान की सीमाओं पर हमले की नीयत सद्दाम और बास पार्टी तक ही सीमित नहीं थी बल्कि उस समय की विश्व व्यवस्था के सरग़ना यानी अमेरिका, सोवियत संघ और उनके पिट्ठू भी हमला करने की ताक में थे।
इस्लामी क्रांति के नेता ने कहा कि ईरान की बेमिसाल क्रांतिकारी जनता से बड़ी शक्तियों की दुशमनी की वजह यह थी कि इस क्रांति की नई सोच और संदेश उनके लिए असहनीय था और उनकी दुशमनी इस लिए थी कि इस्लामी क्रांति, दुनिया पर राज करने वाली भ्रष्ठ और विध्वंसक व्यवस्था और अन्य देशों पर अपनी संस्कृति और राय थोपने वाली व्यवस्था के ख़िलाफ़ एक खुली आवाज़ थी।
उन्होंने इस बात पर ज़ोर देते हुए कि वर्चस्सवादी, इस्लामी इंक़ेलाब के नए पैग़ाम को सहन नहीं कर सकते थे जो राष्ट्रों के लिए आकर्षक और विकास के रास्ते पर ले जाने वाला था, कहा कि वो ईरान पर हमले के मौक़े की ताक में थे और सद्दाम ने जो एक सत्ता लोभी, लालची, घटिया, ज़ालिम और निरंकुश व्यक्ति था बड़ी ताक़तों को यह मौक़ा दे दिया कि उनके बहकावे में आकर उसने ईरान पर हमला कर दिया।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि आज अलग अलग मैदानों में ईरानी क़ौम की मज़बूत के साथ मौजूदगी की बरकत से किसी में भी ईरान की सीमाओं पर हमले की हिम्मत नहीं है और वे लोग आज एक दूसरी शक्ल में दुष्टता और दुश्मनी में लगे हुए हैं। इस बात को पूरी गहराई से समझना चाहिए कि दुश्मनी की वजह परमाणु ऊर्जा, मानवाधिकार और महिलाओं के अधिकार जैसे बहाने नहीं हैं बल्कि वो भ्रष्ट विश्व व्यवस्था के मुक़ाबले में इस्लामिक रिपब्लिक की तरफ़ से पेश की जाने वाली नई सोच के विरोधी हैं।
उन्होंने थोपी गई जंग के आग़ाज़ में सैन्य संसाधनों के लेहाज़ से देश की ख़राब स्थिति की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि आम और भौतिक अनुमानों और उसूलों के अनुसार हमलावर पक्ष को एक या कुछ हफ़्तों के भीरत तेहरान तक पहंच जाना था लेकिन एक साल गुज़रने के बाद हमारी इन्हीं फ़ोर्सेज़ के हाथों ज़बरदस्त विजय ने जो जंग के शुरू में कमज़ोर थीं पूरी तरह से लैस सद्दाम की सेना पर गहरा वार किया और आठ साल बाद उसे देश की सीमाओं से बाहर ढकेल दिया गया और इस विजय की अस्ली वजह ईमान और संघर्ष था।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने इसी तरह कहा कि जंग केवल देश की रक्षा के लिए नहीं थी, हालांकि देश की रक्षा का शुमर अहम मूल्यों में होता है लेकिन जंग का मसला इससे कहीं आगे यानी इस्लाम की रक्षा और क़ुरआनी आदेशों पर अमल करने के अर्थ में था जिसे इस्लामी शिक्षाओं में अल्लाह की राह में जेहाद कहा जाता है।
उन्होंने इस बात पर ज़ोर देते हुए कि पवित्र डिफ़ेंस ने इंकेलाब और इस्लाम को ज़िंदा रखा, कहा कि इसी बुनियाद पर पूरे का पूरा मोर्चा, इबादतगाह, दुआ, तवस्सुल, आधी रात को अल्लाह की बारगाह में गिड़गिड़ाना और निष्ठपूर्ण सेवा के मैदान में बदल गया और इस तरह की भावना की वजह से ही अल्लाह ने अपनी इज़्ज़त, मदद और फ़तह ईरानी क़ौम को प्रदान की।