हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, भारतीय शोधकर्ता मदीहा फ़ातिमा ने अपने लेख "हिंदुत्व के युग में भारतीय मुस्लिम निकाय" में भारत में मुसलमानों की वर्तमान सामाजिक, राजनीतिक और ऐतिहासिक स्थिति का गहन विश्लेषण किया है। उन्होंने मुसलमानों के साथ होने वाले व्यवस्थित अधिकारो की अंदेखी पर प्रकाश डाला है।
शोधकर्ता फ़ातिमा बताती हैं कि भारतीय मुसलमान, अपनी ऐतिहासिक वास्तुकला की तरह, लगातार खतरे में हैं। बाबरी मस्जिद जैसे धार्मिक प्रतीकों के विनाश से लेकर उनकी सांस्कृतिक पहचान तक पर हमला किया गया है। ये हमले केवल शारीरिक हिंसा तक सीमित नहीं हैं, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से भी यह समुदाय निगरानी और उत्पीड़न का सामना कर रहा है।
उन्होने कहा कि भारतीय मुसलमानों को अक्सर पाकिस्तानी, बांग्लादेशी या रोहिंग्या करार देकर उनकी स्वतंत्र पहचान को नकारा जाता है। यह रणनीति उन्हें भारतीय समाज के ताने-बाने से बाहर करने का प्रयास है।
मदीहा फ़ातिमा ने मस्जिदों के विनाश, मुस्लिम बहुल इलाकों पर हमले और नागरिकता अधिकारों से वंचित करने जैसी घटनाओं को व्यवस्थित हिंसा का उदाहरण बताया। उनका कहना है कि इन कृत्यों से मुसलमानों की गरिमा और सम्मान को लक्षित किया जा रहा है।
उन्होने सवाल उठाया कि क्या भारत में मुसलमान इस हिंसा और भेदभाव के चक्र से मुक्त हो पाएंगे, या उन्हें इस विचारधारा के दबाव में हमेशा हाशिए पर रहना पड़ेगा। फ़ातिमा ने अपने विश्लेषण में गहराई और रूपकों के माध्यम से एक गंभीर तस्वीर प्रस्तुत की है।
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