हौज़ा न्यूज़ एजेंसी !
लेखकः सैय्यद साजिद हुसैन रज़वी मोहम्मद
जनाबे उम्मुल बनीन (स.अ) एक ऐसी महान महिला हैं, जिनका नाम इस्लामी इतिहास में वफ़ादारी, क़ुर्बानी और बुलंद अख़लाक़ की पहचान के रूप में हमेशा ज़िंदा रहेगा। आपका असली नाम फ़ातेमा बिन्ते हेज़ाम था, लेकिन "उम्मुल बनीन" के ल़क़ब से आप मशहूर हुईं। यह ल़क़ब इस बात की गवाही देता है कि आपने अपनी ज़िंदगी और औलाद को इस्लाम और अहलेबैत की खिदमत के लिए समर्पित कर दिया। आप अरब के एक बहादुर और शरीफ़ क़बीले से ताल्लुक रखती थीं और अपनी शराफ़त, बहादुरी और इंसानियत के लिए मशहूर थीं।
हज़रत अली (अ.स.) के साथ शादी
जनाबे उम्मुल बनीन का निकाह अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ.स.) के साथ हुआ। निकाह के बाद आपने बहुत ही समझदारी और सादगी के साथ घर के मामलों को संभाला। आपने हज़रत फातेमा ज़हरा (स.अ.) की औलाद की देखभाल और मोहब्बत को अपनी पहली ज़िम्मेदारी समझा। हज़रत इमाम हसन (अ.स.), हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) और जनाबे ज़ैनब (स.अ.) के साथ आपने जो प्यार और ख़िदमत का मुज़ाहेरा पेश किया, वह अपनी मिसाल आप है।
औलाद और कर्बला की क़ुर्बानी
जनाबे उम्मुल बनीन के चार बेटे थे: हज़रत अब्बास , अब्दुल्लाह, जाफ़र और उस्मान अलैहिमुस्सलाम। आपने अपनी औलाद की परवरिश बहादुरी, वफ़ादारी और हक़ के रास्ते पर चलने की तालीम के साथ की। ख़ासतौर पर हज़रत अब्बास (अ.स.) की बे मिसाल वफ़ादारी और क़ुर्बानी आपकी बेहतरीन तर्बियत का नतीजा थी।
जब कर्बला का वाक़ेआ पेश आया, तो आपने अपने तमाम बेटों को हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) की मदद के लिए भेज दिया। "आपने अपने बेटों की शहादत को अल्लाह की राह में अपनी सबसे बड़ी क़ुर्बानी समझा और इसे पूरे सब्र और रज़ामंदी के साथ स्वीकार किया, कभी होठों पर शिकवा या शिकायत का इज़हार नहीं किया।"
आपकी सबसे बड़ी फ़िक्र इमाम हुसैन (अ.स.) और उनके मिशन की कामयाबी थी।
मदीना में ग़म और सब्र का अज़ीम मुज़ाहेरा
कर्बला के बाद जब अहलेबैत (अ.स.) के क़ैदी मदीना लौटे, तो जनाबे उम्मुल बनीन ने सब्र और इस्तेक़ामत का बे मिसाल मुज़ाहेरा किया। आपने कर्बला के शहीदों के ग़म में आंसू बहाए, लेकिन साथ ही लोगों को कर्बला के मक़सद और इमाम हुसैन (अ.स.) के पैग़ाम को समझने की तलक़ीन भी की। आपका ग़म एक ज़रिया बना, जिससे कर्बला के वाक़ेआत की हकीकत लोगों तक पहुंची।
वफ़ा और क़ुर्बानी की प्रेरणा
जनाबे उम्मुल बनीन (स.अ) का किरदार हर दौर की औरतों के लिए वफ़ा, क़ुर्बानी और सब्र की बेहतरीन मिसाल है। आपने अपनी औलाद और अपनी ज़िंदगी को अहलेबैत (अ.स.) की मोहब्बत और इस्लाम की खिदमत के लिए वक़्फ़ कर दिया। आज भी आपकी वफ़ादारी और क़ुर्बानी को याद किया जाता है। मोमेनीन आपसे तवस्सुल करते हैं और आपकी दुआओं की बरकत पर यकीन रखते हैं।
जनाबे उम्मुल बनीन की ज़िंदगी हमें यह पैग़ाम देती है कि अपने मक़सद को पहचानें, हक़ के लिए क़ुर्बानी देने के लिए तैयार रहें और अपनी ज़िम्मेदारियों को ईमानदारी और इस्तेक़ामत के साथ निभाएं।
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