हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, फंदेड़ी सादात में यौम-ए-आशूरा बहुत ही अकीदत, एहतराम और ग़म के माहौल में मनाया गया नबी-ए-अकरम (स.अ.) के नवासे हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) और उनके वफ़ादार साथियों की अज़ीम क़ुर्बानी की याद में पूरे दिन मजलिसें, मातम और जुलूस-ए-अज़ा का सिलसिला जारी रहा। मक़ामी मोमिनीन ने गहरे रंज व ग़म के साथ शोहदाए करबला को ख़िराज-ए-अक़ीदत पेश किया।
इस मौक़े पर फंदेड़ी सादात के तमाम अज़ादारों ने हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) का ताज़िया उठाया, जिसे पूरे एहतराम के साथ जुलूस की शक्ल में "कर्बला" ले जाया गया। जुलूस में मर्द, औरतें, नौजवान और बच्चे शामिल थे, जो "या हुसैनؑ", "लब्बैक या हुसैनؑ" और "हुसैन जिंदाबाद" जैसे नारों के साथ अपने जज़्बात का इज़हार कर रहे थे।
क़ाबिल-ए-ज़िक्र बात यह रही कि आशूरा के इस जुलूस में मुख़्तलिफ़ मज़ाहिब और बिरादरियों के लोगों ने भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। शिया, सुन्नी, और दीगर मुस्लिम फिरक़ों के साथ-साथ हिंदू बिरादरी के लोगों ने भी इमाम हुसैन (अ.स.) की क़ुर्बानी को इंसानियत की निजात का रास्ता मानते हुए अज़ादारी में शिरकत की, और भाईचारे और यकजहती की शानदार मिसाल क़ायम की।
फंदेड़ी सादात के बुज़ुर्गों का कहना था कि इमाम हुसैन (अ.स.) सिर्फ़ मुसलमानों के ही नहीं बल्कि पूरी इंसानियत के इमाम हैं, और उनकी क़ुर्बानी हमें ज़ुल्म के ख़िलाफ़ खड़ा होने, हक़ और सच्चाई के साथ जीने और इंसानी उसूलों की पासदारी का पैग़ाम देती है।
पुलिस और मक़ामी इंतेज़ामिया की जानिब से अमन व अमान के माक़ूल इंतेज़ामात किए गए थे। जुलूस पुरअमन माहौल में कामयाबी के साथ इख़तताम को पहुंचा।
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