हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, नांदेड मस्जिद साजिदीन में पहली बार एक नया प्रयोग करते हुए एक स्टडी सेंटर की शुरुआत की गई है, ताकि छात्रों को एक बेहतर शैक्षिक माहौल मिल सके। इस स्टडी सेंटर का उद्घाटन शाहीन ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरमैन डॉ. अब्दुल कदीर और शाहीन एकेडमी नांदेड के डायरेक्टर अब्दुल हई सर की उपस्थिति में हुआ।
इस मौके पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें स्टडी सेंटर की स्थापना के उद्देश्य को स्पष्ट किया गया। बताया गया कि मुस्लिम बस्तियों में छात्रों के लिए शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करना एक बड़ी चुनौती बन गया है, क्योंकि घरों में बच्चों को अपनी किताबों का प्रभावी अध्ययन करने का उचित माहौल नहीं मिल पाता। इसी कारण से बच्चों को अक्सर निजी स्टडी सेंटरों का सहारा लेना पड़ता है, जिनकी फीस महीने में 1000 से 2000 रुपये तक होती है, जो गरीब परिवारों के लिए अफोर्ड करना मुश्किल होता है।
इस समस्या के समाधान के लिए डॉ. अब्दुल कदीर और उनके साथियों ने मस्जिदों को शैक्षिक केंद्र के रूप में इस्तेमाल करने का निर्णय लिया। उन्होंने इस प्रोजेक्ट की शुरुआत अपनी राज्य कर्नाटका की विभिन्न मस्जिदों में की थी, और इसके सकारात्मक परिणाम सामने आए थे।
डॉ. कदीर ने बताया कि मुस्लिम बस्तियों में बड़ी मस्जिदें हैं, जिनमें से कई मस्जिदों में एक या दो मंजिलें होती हैं। इन मंजिलों का इस्तेमाल आमतौर पर जुमा की नमाज़ और साल में दो बार ईद की नमाज़ के लिए होता है, लेकिन बाकी समय ये स्थान खाली रहते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि इन खाली स्थानों का उपयोग स्टडी सेंटर के रूप में किया जा सकता है। इसके लिए विशेष स्टडी टेबल डिज़ाइन किए गए हैं, जिन्हें आसानी से मोड़ा जा सकता है और मस्जिद के किसी कोने में रखा जा सकता है, ताकि नमाज़ के दौरान जगह की कमी का सामना न करना पड़े।
नांदेड की मस्जिद साजिदीन उस स्थान बनी है, जहां इस अनोखे प्रयोग की शुरुआत की गई है। डॉ. कदीर ने कहा कि यदि कोई इस तरह के स्टडी सेंटर की स्थापना करना चाहता है तो वे न केवल मार्गदर्शन के लिए तैयार हैं, बल्कि आवश्यक फर्नीचर प्रदान करने में भी सहयोग देंगे।
डॉ. कदीर के अनुसार, यदि मुस्लिम बस्तियों में जगह-जगह इस तरह के स्टडी सेंटर स्थापित किए जाएं तो इससे न केवल मुस्लिम छात्रों की शैक्षिक प्रगति होगी, बल्कि बच्चे मस्जिदों से जुड़ जाएंगे और नमाज़ के समय नमाज़ जमाअत के साथ अदा करने के आदी हो जाएंगे। इसके परिणामस्वरूप उनकी धार्मिक और नैतिक शिक्षा भी संभव होगी। यह अनुभव शैक्षिक माहौल प्रदान करने के साथ-साथ मस्जिदों की उपयोगिता को बढ़ाने और छात्रों को धर्म से नजदीक लाने की एक अनोखी कोशिश है।
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