हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एक रिपोर्ट के अनुसार ,हज़रत पैगंबर मुहम्मद स.ल.व.की नुबूवत के आरंभिक क्षणों की एक अद्भुत रिवायत बयान की गई है जिसमें अमीरुल मोमिनीन अली अ.स.व.ने वह समय देखा और सुना जब वह़ी नाज़िल हो रही थी और शैतान के नालों और विलाप की आवाज़ सुनाई दी।
यह आवाज़ उस समय शैतान की पराजय और हिदायत के नूर के सामने उसकी निराशा का प्रतीक थी रिवायत और उसकी व्याख्या इस प्रकार है।
रिवायत में आया है कि अमीरुल मोमिनीन अली अ.स. ने कहा,मैंने वह़ी के नुज़ूल (अवतरण) के समय शैतान के नाले की आवाज़ सुनी।
मैंने पूछा,या रसूलल्लाह स.ल. यह नाला कैसा था?
रसूल अल्लाह (स) ने जवाब दिया,यह शैतान है, जो अब अपनी इबादत से निराश हो चुका है और इस तरह नाला कर रहा है।
फिर रसूल अल्लाह स.ल.व. ने इमाम अली अ.ल.स.से फरमाया,निस्संदेह तुम वही सुनते हो जो मैं सुनता हूं और वही देखते हो जो मैं देखता हूं लेकिन तुम नबी नहीं हो बल्कि, तुम मेरे वज़ीर (सहयोगी) और मददगार हो और भलाई के रास्ते पर हो।
इमाम मुहम्मद बाक़िर अ.स.से एक अन्य रिवायत में आया है,इबलीस ने चार बार नाला किया।
जिस दिन उसे अल्लाह की बारगाह से निकाला गया।
जिस दिन उसे धरती पर उतारा गया।
जिस दिन मुहम्मद (स.ल.स.) को नुबूवत मिली।
जिस दिन ग़दीर का वाक़या पेश आया।
यह रिवायतें यह स्पष्ट करती हैं कि हक़ और बातिल (सत्य और असत्य) की जंग में चार अहम मोड़ आए जब शैतान ने नाला किया:
अल्लाह की बारगाह से निकाला जाना।
धरती पर उतार दिया जाना।
पैगंबर मुहम्मद स.ल.व. की नुबूवत, जो इंसानियत के लिए हिदायत का नया दौर था।
ग़दीर का वाक़या जिसने नुबूवत के रास्ते को जारी रखने की गारंटी दी।
दिलचस्प बात यह है कि अमीरुल मोमिनीन अली अ.ल. अपनी उच्च स्थिति और स्थान की वजह से इन निर्णायक क्षणों के गवाह थे यह वही स्थान है जिसे रसूल अल्लाह स.ल.व. ने स्पष्ट रूप से प्रमाणित किया।
संदर्भ:
नहजुल बलाग़ा, ख़ुतबा 190
अल-ख़िसाल, जिल्द 1, पृष्ठ
आपकी टिप्पणी