हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एक रिपोर्ट के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा जवाद़ी आमुली ने कहां,यह ज़रूरी नहीं कि कोई खामी कब इंसान को रुसवा कर दे! बेहतर यही है कि हम पहले ही अपनी खामी को सुधार लें क्योंकि रास्ता हमारे लिए खुला है।
उन्होंने आगे कहा,जब तक तुम सांस ले रहे हो इससे पहले कि वह खामी तुम्हें रुसवा करे उसे बदल दो! तुम इसे एक खूबसूरत फूल में बदल सकते हो।
उन्होंने आगे कहा,जब इंसान तौबा कर सकता है तो उसे बस कहना चाहिए ऐ अल्लाह, मैं तेरी तरफ लौट आया। इसके लिए न किब्ला की ओर मुंह करना ज़रूरी है न किसी खास पानी से तौबा करनी पड़ती है, न ही कोई विशेष शब्द कहने पड़ते हैं। हाँ,अस्तग़फ़िरुल्लाह’ और इस जैसी दुआएं पढ़ना मुस्तहब है।
यह निश्चित नहीं कि खामी कब इंसान को रुसवा कर दे! इसलिए बेहतर यही है कि हम पहले ही उसे सुधार लें क्योंकि रास्ता हमारे लिए खुला है।
इसके अलावा हर सुबह फरिश्ते पुकारते हैं,क्या कोई है जो तौबा करे, ताकि हम उसे स्वीकार करें? क्या कोई है जो हमसे कुछ मांगे?ये मामूली चीज़ें नहीं हैं बल्कि ये अल्लाह के फरिश्ते हैं जो हमें बुलाते हैं।
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