۲۹ شهریور ۱۴۰۳ |۱۵ ربیع‌الاول ۱۴۴۶ | Sep 19, 2024
इत्रे क़ुरआन

हौज़ा / यह आयत सामाजिक अनैतिकता (अश्लीलता) और उसकी सज़ा से संबंधित है, विशेषकर उन लोगों के लिए जो बुराई करते हैं और फिर पश्चाताप करते हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم  बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम

وَاللَّذَانِ يَأْتِيَانِهَا مِنْكُمْ فَآذُوهُمَا ۖ فَإِنْ تَابَا وَأَصْلَحَا فَأَعْرِضُوا عَنْهُمَا ۗ إِنَّ اللَّهَ كَانَ تَوَّابًا رَحِيمًا. वल्लज़ीना यातेयानेहा मिन्कुम फ़अज़ूहोमा फ़इन ताबा व अस्लहा फ़आरेजू अन्होमा इन्नल्लाहा काना तव्वाबर रहीमा (नेसा, 16)

अनुवाद: और तुम में से उन लोगों को यातना दो जो ज़ुल्म करते हों, फिर अगर वे तौबा कर लें और अपने हालात में सुधार कर लें, तो उन्हें डरा दो कि ख़ुदा तौबा करने वाला और रहम करने वाला है।

विषय:

यह आयत सामाजिक अनैतिकता (अश्लीलता) और उसकी सज़ा से संबंधित है, विशेषकर उन लोगों के लिए जो बुराई करते हैं और फिर पश्चाताप करते हैं।

पृष्ठभूमि:

यह आयत उस समय सामने आई थी जब इस्लाम ने पहली बार सामाजिक अश्लीलता और अनैतिक कृत्यों के खिलाफ सख्त कानून पेश किया था। उस समय अरब समाज विभिन्न अनैतिक आचरणों से पीड़ित था और उन्हें सुधारने के लिए शरिया में ऐसी शिक्षाएँ प्रकट की गईं जिससे व्यक्ति और समाज दोनों का सुधार सुनिश्चित हुआ।

तफ़सीर:

कुछ टिप्पणीकारों के अनुसार, यह उन व्यक्तियों को संदर्भित करता है जो समलैंगिक या अनैतिक यौन संबंध में संलग्न हैं। शुरुआत में उन्हें सामाजिक दंड दिया जाना चाहिए यानी उन्हें लोगों के सामने शर्मिंदा किया जाना चाहिए और दर्दनाक यातना दी जानी चाहिए। हालाँकि, यदि वे अपने कार्यों पर पश्चाताप करते हैं और अपने जीवन में सुधार करते हैं, तो उन्हें माफ कर दिया जाना चाहिए।

यहां अल्लाह की दया और क्षमा की विशेषता का उल्लेख किया गया है, जो दर्शाता है कि पश्चाताप करने वालों के लिए क्षमा का द्वार हमेशा खुला है, बशर्ते कि वे अपनी गलतियों को सुधार लें।

महत्वपूर्ण बिंदु:

1. अश्लीलता पर रोक: यह श्लोक स्पष्ट रूप से अनैतिक कार्यों पर रोक लगाता है और ऐसे व्यक्तियों को दंडित करता है।

2. सुधार और पश्चाताप का महत्व: यदि कोई अपने पापों से दूर हो जाता है और ईमानदारी से पश्चाताप करता है, तो समाज उसे स्वीकार कर लेगा।

3. अल्लाह की रहमत: अल्लाह तौबा करने वालों को माफ करने वाला है और उसकी रहमत बहुत बड़ी है।

परिणाम:

इस्लामी कानूनों में सख्ती के साथ-साथ पश्चाताप और सुधार की भी गुंजाइश है। इस आयत में जहां बुरे कर्मों की सजा दी गई है, वहीं अल्लाह की रहमत और मगफिरत का भी जिक्र किया गया है। यह दर्शाता है कि इस्लाम मानवता की भलाई और सामाजिक सुधार के लिए कानून बनाता है और इसके साथ ही सुधार और क्षमा का द्वार भी खोलता है।

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तफ़सीर राहनुमा, सूर ए नेसा

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