हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने रुकूअ के ज़िक्र को सज्दे मे और सज्दे के ज़िक्र को रुकूअ मे पढ़ने पर अपने विचार व्यक्त किए हैं, जिन्हें हम शरई अहकाम में रुचि रखने वालों के लिए यहां उल्लेख कर रहे हैं।
इस संबंध में इस्लामी क्रान्ति के नेता से पूछे गए प्रश्न और उनके उत्तर का मूल पाठ इस प्रकार है:
प्रश्न: यदि नमाज़ में रुकूअ का ज़िक्र सज्दे मे और सज्दे का ज़िक्र रुकूअ मे पढ़ दे तो क्या इसमें कोई हरज है?
उत्तर: अगर गलती से ऐसा हो जाए तो इसमें कोई हरज नहीं है। इसी प्रकार, यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर अल्लाह तआला का मुतलक ज़िक्र पढ़ने के इरादे से ऐसा करता है, तब भी नमाज़ सही है, लेकिन रुकूअ और सज्दे का मखसूस ज़िक्र भी पढ़ना चाहिए।
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