हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमुली ने कहा, इंसान क़ब्रिस्तान क्यों जाता है? क्या अपने माता-पिता के लिए माफ़ी की दुआ माँगने जाता है या ख़ुद कुछ सीखने जाता है? उन्होंने कहा, अपने माता-पिता के लिए माफ़ी माँगो, ईमान वालों के लिए माफ़ी माँगो - क्योंकि सूरह फातिहा, दूसरे सूरह और आयतें जो तुम पढ़ते हो वो उनके लिए हैं। लेकिन ख़ुद भी एक दुआ करो, उनसे बात करो, उन्हें क़सम दो, उनसे कहो:मैं तुम्हें 'ला इलाहा इल्लल्लाह की क़सम देता हूँ, बताओ वहाँ क्या हो रहा है?यह एक स्कूल है।
आयतुल्लाह जवादी आमली ने कब्रिस्तान जाने से मिलने वाली शिक्षाओं के बारे में लिखा और कहा,क्या इंसान कब्रिस्तान सिर्फ अपने माता-पिता के लिए माफी की दुआ माँगने जाता है या खुद कुछ सीखने जाता है?
उन्होंने कहा: अपने माता-पिता के लिए माफी माँगो, मोमिनीन के लिए माफी माँगो, लेकिन साथ ही खुद भी एक दुआ करो, उनसे बात करो, उन्हें 'ला इलाहा इल्लल्लाह' की कसम दो और पूछो: «یَا أَهْلَ لَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ بِحَقِّ لَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ کَیْف وَجَدْتُم قَوْل لَاإِلَهَ إِلَّا اللَّهُ مِنْ لَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ» ای «أَهْلَ لَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ» شما را به «لَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ» यह एक स्कूल है। अगर कोई कब्रिस्तान जाए और कुछ न सीखे लौटे तो यह एक नुकसान है।
ऐसा नहीं है कि हम कहें:जिसे वहाँ का हाल मालूम हो गया, वह वापस आकर कुछ नहीं बताता।नहीं, जिसे वहाँ का हाल मालूम हुआ, वह वापस आकर बताता भी है। हाँ, हम उसकी खबर नहीं ले पाते लेकिन ये बातें सच हैं।
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