हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,इमाम जुमआ मित्तुपुर आजमगढ़/ रमज़ान उल मुबारक का यह दूसरा अशरा माफ़ी के लिए है इसलिए जितना हो सके तौबा करके माफ़ी माँग कर अल्लाह के करीब आने की कोशिश करें। इस महीने में रोज़ा रखने का अर्थ यह है कि रोज़ा रखने वाला अल्लाह के लिए खाने पीने से परहेज़ करता है भले ही उसके पास खाने और पीने की सामान उपलब्ध हो बस इसी तरह पापों से भी दूर रहना हैंं।
इस रमज़ान के महीने में रोज़े की हालत में सिर्फ एक ही चीज़ पी सकते हैं और उसे पीने से रोज़ा भी नहीं टूटता बल्कि पीने से रोज़ा अच्छा हो जाता है और इसे पीने का हुक्म ज़ोर देकर दिया गया है जिसका नाम है क्रोध।
इमाम हसन (अ.स.) के जन्म के मौके पर इमाम से कुछ सीखे इमाम का दस्तरखान हमेशा लोगो के लिया सजा रहता था तो हमे भी चाहिए की रोज़ न सही कभी कभी लोगो के लिए सजाना चाहिए। इमाम सिखाता है कि कैसे मदद करनी है,
लेकिन हम सीखते हैं कि मदद कैसे प्राप्त की जाए। इमाम को कुरआन पढ़ना पसंद है लेकिन हमने कुरान को ताक पर रख दिया है दिल में जंग लग गया है अर्थात् इस दिल को रोशन करने के लिए कुरान की तिलावत जरूरी है। वह घर कब्र जैसा है जहा कुरान नही पढ़ा जाता। जब पाठ नहीं होगा,
तो घर कब्र के अंधेरे जैसा होगा। जिस घर में पाठ किया जाता है वह घर स्वर्ग के लोगों के लिए चमकता है जैसे पृथ्वी पर लोगों के लिए आकाश में तारे चमकते हैं। यह महीना इज़्ज़त वाला है, इसका सम्मान करो, ख़ासकर फ़ितना और फ़साद से ख़ुद को बचाओ और दूसरों को भी बचाओ।