गुरुवार 1 मई 2025 - 17:26
ग़ैबत का अर्थ और इतिहाकी पृष्ठभूमि

हौज़ा / ग़ैबत और गुप्त जीवन बिताना कोई नई या पहली बार होने वाली चीज़ नहीं है, और यह सिर्फ़ आखिरी अल्लाह की हुज्जत इमाम महदी (अ) के साथ ही नहीं हुआ है। बहुत सारी इस्लामी रिवायतों से पता चलता है कि कई बुज़ुर्ग पैग़म्बर भी अपनी ज़िंदगी के कुछ हिस्से में छुपकर रहे हैं। यह अल्लाह की हिकमत और मसलहत थी न कि किसी व्यक्तिगत इच्छा या परिवार के फ़ायदे के लिए नही।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, पहली महत्वपूर्ण बात यह है कि "ग़ैबत" का मतलब होता है "आँखों से छुपा होना," न कि "मौजूद न होना।" इसलिए, यहाँ बात उस दौर की हो रही है जब इमाम महदी (अ) लोगों की नज़रों से छुपे हुए हैं और लोग उन्हें नहीं देख पाते। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह मौजूद नहीं हैं। वह लोगों के बीच मौजूद हैं और उनके साथ रहते हैं। यह हक़ीक़त इमामों की कई हदीसों में अलग-अलग शब्दों में बयान की गई है।

इमाम अली (अ) ने फ़रमायाः

فَوَ رَبِّ عَلِیٍّ إِنَّ حُجَّتَهَا عَلَیْهَا قَائِمَةٌ مَاشِیَةٌ فِی طُرُقِهَا دَاخِلَةٌ فِی دُورِهَا وَ قُصُورِهَا جَوَّالَةٌ فِی شَرْقِ هَذِهِ اَلْأَرْضِ وَ غَرْبِهَا تَسْمَعُ اَلْکَلاَمَ وَ تُسَلِّمَ عَلَی اَلْجَمَاعَةِ تَرَی وَ لاَ تُرَی إِلَی اَلْوَقْتِ وَ اَلْوَعْدِ. फ़वरब्बे अलीइन इन्ना हुज्जतहा अलैहा क़ाएमतुन माशीयतुन फ़ी तोरोक़ेहा दाख़ेलतुन फ़ी दूरेहा व क़ुसूरेहा जव्वालतुन फ़ी शर्क़े हाज़ेहिल अर्ज़े व ग़र्बेहा तस्मउल कलामा व तोसल्लेमा अलल जमाअते तरा वला तुरा इलल वक़्ते वल वअदे (अल ग़ैबतुन नौमानी, पेज 144)

"मैं अल्लाह की कसम खाता हूँ कि उसी समय वह (इमाम महदी [अ]) हक़ीक़त में मौजूद हैं, वह हमारे समाज में घूमते-फिरते हैं, गली-नुक्कड़ में आते-जाते हैं, घरों और महलों में दाखिल होते हैं, पूर्व और पश्चिम दोनों ओर घूमते रहते हैं। वह लोगों की बातें सुनते हैं, उनकी सभा को सलाम करते हैं। वह देखते हैं लेकिन दिखाई नहीं देते, जब तक कि उनका वक़्त और वादा पूरा न हो जाए।"

हालाकि उनके लिए एक और प्रकार की ग़ैबत भी बताई गई है।

इमाम सादिक (अ) ने फ़रमाया:

إِنَّ فِی صَاحِبِ هَذَا اَلْأَمْرِ سنن [سُنَناً] مِنَ اَلْأَنْبِیَاءِ عَلَیْهِمُ السَّلاَمُ ... وَ أَمَّا سُنَّتُهُ مِنْ یُوسُفَ فَالسِّتْرُ یَجْعَلُ اَللَّهُ بَیْنَهُ وَ بَیْنَ اَلْخَلْقِ حِجَاباً یَرَوْنَهُ وَ لاَ یَعْرِفُونَهُ इन्ना फ़ी साहेबे हाज़ल अम्रे सुनानुन [ सोनोनन ] मेनल अम्बियाए अलैहेमुस सलामो ... व अम्मा सुन्नतोहू मिन यूसूफ़ा फ़स्सितरो यज्अलुल्लाहो बयनहू व बैनल ख़ल्क़े हेजाबन यरौनहू वला यअरेफ़ूनहू (कमालुद्दीन, भाग 2, पेज 350)

"साहेबे अम्र इमाम महदी (अ) के लिए पैग़म्बरों की कुछ परंपराएँ मौजूद हैं... लेकिन उनकी सुन्नत यूसुफ़ (अ) की तरह है, यानी छुपे रहना। अल्लाह उनके और लोगों के बीच एक पर्दा डाल देता है, जिससे लोग उन्हें देखते हैं, लेकिन पहचान नहीं पाते।"

इसलिए, इमाम महदी (अ) की ग़ैबत दो तरह की होती है: कभी वे लोगों की नज़रों से पूरी तरह छुपे होते हैं, और कभी वे दिखाई देते हैं लेकिन लोग उन्हें पहचान नहीं पाते। फिर भी, हर हाल में वे लोगों के बीच मौजूद रहते हैं।

ग़ैबत का इतिहास और पृष्ठभूमि

ग़ैबत और छुपकर रहना ऐसा कोई नया या अनोखी घटना नहीं है जो सिर्फ़ आखिरी हुज्जत इमाम महदी (अ) के साथ हुआ हो। कई इस्लामी रिवायतों से पता चलता है कि कई बुजुर्ग पैग़म्बर भी अपनी ज़िंदगी के कुछ हिस्सों में छुपे हुए रहे हैं। यह ग़ैबत अल्लाह की हिकमत और मसलहत के लिए होती थी, न कि पैग़म्बरों की अपनी इच्छा या पारिवारिक कारणों से।

इसलिए ग़ैबत अल्लाह की एक सुन्नत है, जो कई पैग़म्बरों जैसे हज़रत इद्रीस, नूह, सालेह, इब्राहीम, यूसुफ़, मूसा, शुऐब, इलियास, सुलैमान, दानियाल और ईसा (अलैहिमुस्सलाम) के जीवन में भी देखी गई है। हर एक पैग़म्बर ने अपनी परिस्थितियों के अनुसार कुछ सालों तक ग़ैबत में बिताए हैं।

इसी वजह से, इमाम महदी (अ) की ग़ैबत को भी पैग़म्बरों की सुन्नतो में से एक माना जाता है। उनकी ग़ैबत का एक बड़ा कारण यह है कि वे पैग़म्बरों की इस सुन्नत को अपने जीवन में निभा रहे हैं।

इस तरह, ग़ैबत एक इलाही और ऐतिहासिक प्रक्रिया है जो अल्लाह की मसलहत और हिकमत के तहत होती है, और यह सिर्फ़ इमाम महदी (अ) तक सीमित नहीं है, बल्कि यह कई पैग़म्बरों के जीवन का हिस्सा रही है।

इमाम सादिक़ (अ) ने फ़रमाया:

إِنَّ لِلْقَائِمِ مِنَّا غَیْبَةً یَطُولُ أَمَدُهَا؛ इन्ना लिल क़ायमे मिन्ना ग़ैबतन यतूलो अमदोहा

सचमुच हमारे बीच से क़ायम (इमाम महदी) की एक ग़ैबत है जिसकी अवधि लंबी होगी।

فَقُلْتُ لَهُ وَ لِمَ ذَاکَ یَا اِبْنَ رَسُولِ اَللَّهِ؛ फ़क़ुल्तो लहू व लेमा ज़ाका यब्ना रसूलिल्लाहे

रावी ने उनसे पूछा: "ऐ रसूले खुदा के बेटे, इसका कारण क्या है?"

قَالَ إِنَّ اَللَّهَ عَزَّ وَ جَلَّ أَبَی إِلاَّ أَنْ یُجْرِیَ فِیهِ سُنَنَ اَلْأَنْبِیَاءِ عَلَیْهِمُ السَّلاَمُ فِی غَیْبَاتِهِمْ क़ाला इन्नल्लाहा अज़्ज़ा व जल्ला अबा इल्ला अन युज्रेया फ़ीहे सोननुल अम्बियाए अलैहेमुस सलामो फ़ी ग़ैबातेहिम

इसका मतलब यह है कि इमाम महदी (अ) की ग़ैबत अल्लाह की एक सुन्नत है, जो पैग़म्बरों की ग़ैबत जैसी होती है, और इसलिए यह लंबी अवधि की होगी।

उपरोक्त कथन से यह भी स्पष्ट होता है कि इमाम महदी (अ) की ग़ैबत का विषय उनके जन्म से कई साल पहले ही उठाया गया था। इस्लामी नेता और पूर्ववर्तियों ने पैग़म्बर मुहम्मद (स) से लेकर इमाम अस्करी (अ) तक, उस महान व्यक्ति की ग़ैबत, उसकी कुछ विशेषताएँ, और ग़ैबत के दौरान होने वाली घटनाओं के बारे में पहले ही बताया था। साथ ही, उन्होंने उस समय के लिए मोमिन लोगों के कर्तव्यों को भी स्पष्ट किया था।

पैग़म्बर मुहम्मद (स) ने भी इमाम महदी (अ) की ग़ैबत के बारे में इस तरह फरमाया हैः

اَلْمَهْدِیُّ مِنْ وُلْدِی اِسْمُهُ اِسْمِی وَ کُنْیَتُهُ کُنْیَتِی أَشْبَهُ اَلنَّاسِ بِی خَلْقاً وَ خُلْقاً تَکُونُ بِهِ غَیْبَةٌ وَ حَیْرَةٌ تَضِلُّ فِیهَا اَلْأُمَمُ ثُمَّ یُقْبِلُ کَالشِّهَابِ اَلثَّاقِبِ یَمْلَؤُهَا عَدْلاً وَ قِسْطاً کَمَا مُلِئَتْ جَوْراً وَ ظُلْماً  अलमहदी मिन वुल्दी इस्मोहू इस्मी व कुन्नियतोहू कुन्नियति अश्बहुन नासे बी ख़ल्क़न व ख़ुलक़न तकूनो बेहि ग़ैबतुन व हैरतुन तज़िल्लो फ़ीहल उमामो सुम्मा युक़्बेलो कश्शहाबिस साक़ेबे यमरलूहा अदलन व क़िस्तन कमा मोलेअत जौरन व ज़लुमा (कमालुद्दीन, भाग 1, पेज 286)

"महदी मेरे वंशजों में से हैं। उनका नाम मेरा नाम है और उनका उपनाम मेरा उपनाम है। रूप-रंग और चरित्र दोनों में वे मुझसे सबसे अधिक मिलते-जुलते हैं। उनके लिए एक ग़ैबत और उलझन का समय होगा, जिसमें लोग भटक जाएंगे। फिर वे एक तेज़ चमकते तारे की तरह जुहूर करेंगे और ज़मीन को न्याय और इन्साफ़ से भर देंगे, जैसे कि वह पहले अत्याचार और अन्याय से भरी हुई होगी।"

इक़्तेबास: किताब "नगीन आफरिनिश" से (मामूली परिवर्तन के साथ)

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