रविवार 4 मई 2025 - 09:32
हज;बरकत और रहमत का सर चश्मा है

हौज़ा / यज़्द के इमामे जुमआ ने कहा,हज बरकत और फ़ैज़ का स्रोत है और बैतुल्लाह के ज़ायरीन को चाहिए कि इस आध्यात्मिक यात्रा में मारिफ़त हासिल करें और आत्म-सुधार के ज़रिए आख़िरत की यात्रा के लिए रूहानी ज़ाद-ए-राह तैयार करें।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, यज़्द में रहबर-ए-मुअज़्ज़म के प्रतिनिधि और इमामे जुमा आयतुल्लाह मोहम्मद रज़ा नासरी ने सूबे के हज व ज़ियारत के सक्रिय कार्यकर्ताओं से मुलाक़ात के दौरान कहा,हज का सफर सबसे महत्वपूर्ण रूहानी (आध्यात्मिक) सफर है और इसका अन्य सफ़रों से अलग स्थान है। इसलिए जो लोग इस यात्रा पर जा रहे हैं, उनकी नीयत, इरादा और अमल भी खास और अलग होना चाहिए।

उन्होंने कहा,हज तमत्तुअ के सफर में अल्लाह से ऐसा संबंध होना चाहिए कि ज़ायरीन की रूह में एक गहरी तब्दीली (परिवर्तन) आए, और यह रूहानी हालत उनकी पूरी ज़िंदगी में उनके लिए एक रहनुमा चिराग़ बन जाए।

यज़्द के इमामे जुमआ ने कहा,हज बरकत और रहमत का स्रोत है, और ज़ायरीन को चाहिए कि वे इस सफर में मआरिफ़त और खुदसाज़ी (आत्म-सुधार) के ज़रिए अपनी आख़िरत की यात्रा के लिए सामान (सpritual provisions) तैयार करें।

उन्होंने हज के कार्यकर्ताओं की ज़िम्मेदारी को अहम और भारी बताया और कहा,हज के कर्मचारियों पर यह वाजिब है कि वे हज के मनाकिब की सही अदायगी, धार्मिक ज्ञान में वृद्धि, और इबादत में सुकून देने वाला माहौल तैयार करें।

आयतुल्लाह नासरी ने कहा,कारवाँ के उलेमा और सांस्कृतिक ज़िम्मेदारों को चाहिए कि ज़ायरीन की जानकारी और उनकी दीनदारी में इज़ाफ़े के लिए मुनासिब योजनाएं बनाएं और इसमें कोई लापरवाही न करें।

उन्होंने हज तमत्तुअ की लंबी अवधि की तरफ़ इशारा करते हुए कहा,चूंकि हज का यह सफर लंबा होता है और ज़ायरीन के पास अच्छा खासा वक्त होता है, इसलिए ज़रूरी है कि इस वक्त को ज़ाया होने से बचाने के लिए प्रभावशाली योजनाबंदी की जाए।

इमामे जुमा यज़्द ने अंत में कहा, हज के इस सफर से फ़ायदा उठाते हुए ज़ायरीन के लिए मआरिफ़ती अख़लाक़ी और तारीखी (ऐतिहासिक) कक्षाएं आयोजित की जा सकती हैं, ताकि वे विभिन्न धार्मिक विषयों, विशेषकर इस्लाम के शुरुआती दौर के इतिहास से परिचित हो सकें।

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