बुधवार 14 मई 2025 - 12:49
मैं अपने लिए नहीं, बल्कि लोगों के लिए हरम आया हूँ

हौज़ा / महान आध्यात्मिक विद्वान और मरजा-ए तक़लीद आयतुल्लाह बहजत रह. की जीवन शैली का एक प्रमुख पहला उनकी निष्काम भक्ति और ज़ियारत थीं, जहाँ वे हमेशा अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं के बजाय मोमिनीन और दुआ के मुहताज लोगों को याद रखते थे।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, किताब सोहबत-ए सालहा में वर्णित एक घटना के अनुसार, जब आयतुल्लाह बहजत हरम-ए मोतहर में ज़ियारत के लिए जाते तो कहा करते थे मैं यहाँ उन्हीं लोगों के लिए आया हूँ, जो मेरे आसपास मौजूद हैं।

वह ज़ियारत को कई बार अलग-अलग लोगों की नियाबत में पढ़ते थे और कहते थे कि उनके आसपास मौजूद सभी लोगों की ज़रूरतें उनके दिल में होती हैं।

15 साल पहले दुबई से आए एक शख्स का अनुभव, एक व्यक्ति ने बताया कि वह 15 साल पहले दुबई से आया था और आयतुल्लाह बहजत के पीछे हरम में चुपचाप बैठा रहा। जब आयतुल्लाह बहजत दुआ से फ़ारिग हुए, तो माफ़ी माँगते हुए बोले, माफ़ कीजिए, मैं व्यस्त था, लेकिन महसूस किया कि आप आए हैं, इसलिए आपको भी इबादत में शामिल कर लिया।

मरहूम नख़ोदकी की मज़ार पर एक और घटना,
एक बार ज़ियारत के बाद आयतुल्लाह बहजत मरहूम नख़ोदकी (रह.) की मज़ार पर फातिहा पढ़ रहे थे कि एक व्यक्ति ज़ोर-ज़बरदस्ती से उन तक पहुँचने की कोशिश कर रहा था। जब कारण पूछा गया, तो पता चला कि वह अपनी हाजत बताना चाहता है। 

आयतुल्लाह बहजत ने कहा,मैं खुद भी इन सभी के लिए ही यहाँ आया हूँ, अपने किसी काम के लिए नहीं। मैं आया हूँ ताकि मरहूम नख़ोदकी, इमाम (अ.स.) की खिदमत में इनकी हाजत पेश करें।

ये शब्द और व्यवहार आयतुल्लाह बहजत के आध्यात्मिक और निस्वार्थ स्वभाव की जीती-जागती मिसाल हैं वह सिखाते हैं कि दुआ और इबादत का असली मक़सद दूसरों के लिए दिल से प्रार्थना करना है, न कि सिर्फ़ अपनी ज़रूरतों के लिए। 

टैग्स

आपकी टिप्पणी

You are replying to: .
captcha