۱۵ تیر ۱۴۰۳ |۲۸ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 5, 2024
ज़ायर

हौज़ा / पाकिस्तान के एक ज़ायर का कहना है कि हज़रत इमाम अली बिन मूसा अल-रज़ा (अ.स.) के हरम तक पहुँचने से मन को शांति मिलती है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, हर साल अलग-अलग देशों से अहलेबैत (अ.स.) के लाखों अनुयायी इमाम रजा (अ.स.) के हरम मे ज़ियारत (दर्शन) करने आते हैं। उन्ही ज़ियारत करने वालो मे से उर्दू भाषा बोलने वालो की भी बड़ी संख्या इमाम अली रज़ा (अ.स.) की ज़ियारत करने के लिए मशहद आते हैं।

लाहौर, पाकिस्तान से एक तीर्थयात्री अपनी भक्ति और प्रेम को इस प्रकार व्यक्त करता है: "मैं यहां चालीस साल पहले अपने माता-पिता के साथ इमाम रजा (अ.स.) की ज़ियारत करने आया था। मैं फिर से इमाम रजा (अ.स.) की ज़ियारत करने जाना चाहता हूं। ईरान और इराक में जब भी जायरीन जियारत के लिए जाते हैं , मैं उन सभी को अलविदा कहने जाता और उनसे कहता कि मेरे लिए दुआ करें ताकि मैं भी इमाम रजा (अ.स.) की फिर से ज़ियारत कर सकूं।

इमाम रज़ा (अ.स.) के तीर्थयात्री गुलाम रज़ा रसूल ने कहा: मैं 21 दिनों से ईरान में हूँ। 10 दिन पहले क़ुम मे हरमे मासूमा की ज़ियारत की और अब 10 दिन से इमामे रज़ा (अ.स.) का मेहमान हूं। इमामे रज़ा (अ.स.) के हरम पहुंच कर मेरे दिल की जो शांति मिली, वह कहीं नहीं मिली। जबकि इमाम रज़ा (अ.स.) के हरम का विस्तार और निर्माणी परियोजना के तहत इन चालीस वर्षो मे बहुत अधिक परिर्वतन देखने मे आया है लेकिन हरम का वही आध्यात्मिक माहौल है और इस तरह दिल को शांति मिलती है और हरम में पहुंचने पर दुनिया के सारे दुख भुला दिए जाते हैं।

उन्होंने कहा कि चालीस साल पहले उर्दू ज़बान ज़ायरीन के लिए इस तरह के संगठित कार्यक्रम आयोजित नहीं किए जाते थे। अलहमदो लिल्लाह मुझे बहुत खुशी हुई जब यह देखा कि इमाम रज़ा (अ.स.) के हरम मे उर्दू ज़बान ज़ायरीन के लिए उर्दू भाषा मे नियोजित मजलिस का आयोजन किया जाता है और हरम की ओर से जायरीन को उपहार दिए जाते हैं।

गौरतलब है कि दारुर रहमा में उर्दू जबान ज़ायरीन के मार्गदर्शन के लिए सुबह से शाम तक उर्दू भाषा के विद्वान मौजूद रहते हैं। दारुर रहमा में जाकर आप मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं।

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