हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, आयतुल्लाह हुसैनी ने इस मुलाक़ात में हज़रत आयतुल्लाह जवादी आमोली से मुलाक़ात कर उनकी इराक़ में मौजूदगी को एक बड़ी नेमत करार दिया।
इस अवसर पर आयतुल्लाहिल उज़मा जवादी आमोली ने हौज़ा-ए-इल्मिया नजफ़ अशरफ़ में उलूमे अक़लीया पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। उन्होंने अंदलुस (स्पेन) में इस्लामी तहज़ीब के पतन का ज़िक्र करते हुए कहा कि इसका मुख्य कारण वहां के शैक्षिक केंद्रों की ओर से फिक्री व अकीदती शुब्हों का प्रभावी जवाब न दे पाना था।
उन्होंने फ़रमाया,अगर हौज़ात-ए-इल्मिया उलूमे अक़लीया को अहमियत दें, तो वे फिक्री हमलों और शुब्हों (संदेहों) का डटकर मुक़ाबला करने में सक्षम होंगे।
इस मुलाक़ात में आयतुल्लाह हुसैनी के साथ हौज़ा-ए-इल्मिया नजफ़ में रहबर-ए-मुअज़्ज़म के नुमाइंदे हुज्जतुल इस्लाम कारदान और उनके अन्य सहयोगी भी मौजूद थे। उन्होंने इराक़ में अपनी दस वर्षीय प्रतिनिधित्व के दौरान की गई गतिविधियों की रिपोर्ट पेश की और कहा,आज का हौज़ा, दस साल पहले की तुलना में शैक्षिक और सामाजिक दोनों दृष्टियों से कहीं अधिक विकसित और सक्रिय है।
इस पर आयतुल्लाह जवादी आमोली ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा,सद्दाम, जो कि हौज़ात का दुश्मन था, समाप्त हो चुका है लेकिन हम में से हर एक के अंदर एक 'सद्दाम' मौजूद है, जिससे सतर्क रहने की ज़रूरत है, क्योंकि यह अंदरूनी दुश्मन ही एकता के रास्ते में सबसे बड़ी रुकावट बनता है।
उन्होंने आगे कहा,इस्लामी समाज को इज़्ज़तदार होना चाहिए हमें ताक़तवर पश्चिमी सरकारों के सामने हाथ फैलाने की कोई ज़रूरत नहीं है। हमारे पास एक समृद्ध और कीमती सांस्कृतिक विरासत है। हम एक प्राचीन सभ्यता के वारिस हैं, जबकि पश्चिमी शक्तियों के पास न कोई गौरवशाली इतिहास है और न ही कोई उल्लेखनीय भूगोल है।
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