शुक्रवार 16 मई 2025 - 16:45
क़ुरआन सुनना, अल्लाह की रहमत के नाज़िल होने का ज़रिया हैं

हौज़ा / क़ुरआन सुनना अल्लाह की रहमत के नाज़िल होने का ज़रिया है यह बात इस्लामी शिक्षाओं में बार बार सामने आती है कि क़ुरआन सिर्फ पढ़ने की चीज़ नहीं, बल्कि उसे तवज्जो से सुनना भी एक इबादत है। क़ुरआन में खुद अल्लाह फरमाता है وَإِذَا قُرِئَ الْقُرْآنُ فَاسْتَمِعُوا لَهُ وَأَنْصِتُوا لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُون.

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने फरमाया,क़ुरआन सुनना अल्लाह की रहमत के नाज़िल होने का ज़रिया है यह बात इस्लामी शिक्षाओं में बार बार सामने आती है कि क़ुरआन सिर्फ पढ़ने की चीज़ नहीं, बल्कि उसे तवज्जो से सुनना भी एक इबादत है।

क़ुरआन में खुद अल्लाह फरमाता है:

"وَإِذَا قُرِئَ الْقُرْآنُ فَاسْتَمِعُوا لَهُ وَأَنْصِتُوا لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ"
(सूरह अ'राफ़, 204)
और जब क़ुरआन पढ़ा जाए तो ध्यान से सुनो और खामोश रहो, ताकि तुम पर रहमत नाज़िल हो।

क़ुरआन सुनना वाजिब व ज़रूरी काम है, अब या तो ख़ुद आयत की तिलावत कीजिए या फिर किसी और से क़ुरआन की तिलावत सुनिए।साल के दौरान कोई दिन ऐसा न गुज़रे जब आप क़ुरआन न खोलें और क़ुरआन की तिलावत न करें।

तो क़ुरआन का सुनना पहली बात यह कि ईमान की वजह सेफ़रीज़ा है, दूसरे यह कि अल्लाह की रहमत के नाज़िल होने का ज़रिया है। इरशाद होता हैः और (ऐ मुसलमानो) जब क़ुरआन पढ़ा जाए तो कान लगा कर (तवज्जो से) सुनो और ख़ामोशहो जाओ ताकि तुम पर रहमत की जाए। (सूरए आराफ़, आयत-204) यानी क़ुरआन सुनना अल्लाह की रहमत के दर खोल देता है।

इमाम ख़ामेनेई
 

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