शनिवार 31 मई 2025 - 15:40
पूरी कायनात के ज़रिए खुदा को पहचानने का एक बेहतरीन जरिया है

हौज़ा / पार्सियान के इमाम ए जुमआ हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन इस्माईल निया ने कहा कि पूरी कायनात एक खुली खुदाशनासी की कक्षा है, और हमें चाहिए कि हम इन अल्लाह की निशानियों में तदब्बुर करके अपने रब की मारिफ़त और बंदगी तक पहुँचें।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,पार्सियान के इमाम ए जुमआ हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन इस्माईल निया ने कहा कि पूरी कायनात एक खुली  खुदाशनासी  की कक्षा है, और हमें चाहिए कि हम इन अल्लाह की निशानियों में तदब्बुर करके अपने रब की मारिफ़त और बंदगी तक पहुँचें।

वह हर्मोज़गान की हौज़ा इल्मिया ख़वातीन द्वारा आयोजित दरियाए बेक़रान नामक कार्यक्रम में बोल रहे थे जो कि नहजुल बलाग़ा की हिकमतों की व्याख्या के उद्देश्य से आयोजित किया गया था।

ग़दीर का संदेश हर इंसान तक पहुँचाना ज़िम्मेदारी है

उन्होंने कहा,हम सब पर यह वाजिब है कि ग़दीर का पैग़ाम दूसरों तक पहुँचाएँ यह वह ज़िम्मेदारी है जिसे पैग़म्बरे इस्लाम (स.ल.व.) ने हमारे कंधों पर रखा,हाज़िर ग़ायब को बताए, और बाप बेटे को क़यामत तक अगर ग़दीर को ज़िंदा रखा गया होता, तो कर्बला की त्रासदी (अशूरा) न होती।

नहजुल बलाग़ा की हिकमतों में इंसान का रहस्य:

उन्होंने नहजुल बलाग़ा की हिकमत नंबर 8 का ज़िक्र करते हुए कहा कि हज़रत अली (अ.स.) इंसान को एक अजीब मख़लूक़ बताते हैं जो एक चर्बी के टुकड़े से देखता है,गोश्त से बोलता है, हड्डी से सुनता है और एक दरार से साँस लेता है। यह साधारण से लगने वाले शब्द, इंसान के जिस्म में छिपे ईश्वर के अजीबोगरीब अजूबों और रचनात्मकता की गहराई को दर्शाते हैं।

आँख, ज़बान, कान और नाक: अल्लाह की निशानियाँ

आँख: इंसानी आँख बिना किसी बाहरी मेमोरी या फिल्म के, वर्षों तक काम करती है उसकी बनावट, रोशनी की एडजस्टमेंट, और निरंतर नमी यह सब अल्लाह की बेअंत हिकमत का प्रमाण है।

ज़बान: यह एक छोटा सा मांस का टुकड़ा है, जो दिमाग से विचार लेता है और उन्हें बोल में बदल देता है। यह सेकंड में सैकड़ों ध्वनियाँ पैदा कर सकता है।

कान: चंद हड्डियों से बना यह अंग आवाज़ों की फ्रिक्वेंसी को ग्रहण करता है, उन्हें प्रोसेस करता है और शरीर के संतुलन में भी भूमिका निभाता है।

नाक: यह न सिर्फ साँस लेने का माध्यम है, बल्कि सूंघने की क्षमता का केंद्र भी है।

हर निशानी, इंसान को अपने रब की तरफ़ ले जाती है

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि इन तमाम अजूबों का मक़सद इंसान को उसके ख़ालिक़ की पहचान की तरफ़ ले जाना है अल्लाह ने वादा किया है कि वह अपनी निशानियाँ हमें बाहर की दुनिया (आफ़ाक़) और हमारी आत्मा (अनफ़ुस) दोनों में दिखाएगा, ताकि यह साफ़ हो जाए कि वही हक़ (सत्य) है।

टैग्स

आपकी टिप्पणी

You are replying to: .
captcha