हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, मजलिस ए ख़ुबरगान-ए रहबरी के सदस्य आयतुल्लाह सैयद अबुलहसन महदवी ने मदरसा-ए इल्मिया मुल्लाह अब्दुल्लाह में नहजुल बलाग़ा की हिकमत नंबर 100 की व्याख्या करते हुए कहा, नहजुल बलाग़ा की इस हिकमत में इमाम अली अ.स.ने दुनिया और आख़िरत को दो अलग-अलग दुश्मन बताया है जो एक-दूसरे की जगह नहीं ले सकते इंसान अपनी मर्ज़ी से या तो दुनिया की ओर झुकता है या आख़िरत के करीब होता है।
उन्होंने कहा, इस रिवायत में आया है:
«إنّ الدّنیا و الاخرة عدوّان متفاوتان»
(दुनिया और आख़िरत दो अलग-अलग दुश्मन हैं) यानी दुनिया और आख़िरत दो अलग रास्ते हैं और इमाम (अ.स.) ने «سبیلتان مختلفتان»(दो अलग-अलग रास्ते) के शब्दों से इस बुनियादी फ़र्क़ को याद दिलाया है।
मजलिस ए ख़ुबरगान के इस सदस्य ने आगे कहा, अगर कोई दुनिया से मोहब्बत करे और उसे अपना वली (संरक्षक) बना ले तो वह आख़िरत से दूर हो जाएगा, जैसा कि कुरआन में आया है कि कुछ लोग, ख़ासकर यहूदी, दुनिया के सबसे ज़्यादा लालची लोग हैं और उनकी आख़िरत के बारे में नज़र बग़ावत और द्वेष की है।
उन्होंने कहा,इमाम अली (अ.स.) ने इस हिकमत में दुनिया और आख़िरत को पूर्व और पश्चिम के समान बताया है। जब कोई एक के करीब होगा, तो वह दूसरे से दूर हो जाएगा।
आयतुल्लाह महदवी ने कहा,रिवायत के आख़िर में आया है: «و هما بعد ضرتان» (और वे दोनों एक साथ रहने वाली सहचरियों की तरह हैं) यानी दुनिया और आख़िरत ऐसी दो सहचरियाँ हैं जो एक जगह पर साथ जीवन बिताने के लिए तैयार नहीं हैं।
उन्होंने कहा,इमाम अली (अ.स.) ने (दुश्मन) शब्द को इस विरोधाभास को बताने के लिए एक उपमा के रूप में इस्तेमाल किया है, हालाँकि इसका असली मतलब बाहरी दुश्मनी है। इसी तरह, "سبیلان" (दो रास्ते) का मतलब दो अलग-अलग रास्तों के रूप में बताया गया है ताकि यह स्पष्ट किया जा सके कि इंसान का लक्ष्य ही उसके चलने के रास्ते का निर्धारण करता है।
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