हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इस रिवायत को "नहजुल बलाग़ा " पुस्तक से लिया गया है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार हैं।
:قال امیر المؤمنين(ع)
و لَقد قالَ لي رسولُ اللّه ِصلى الله عليه و آله: إنّي لا أخافُ على اُمَّتي مُؤمِنا و لا مُشرِكا، أمّا المُؤمنُ فيَمنَعُهُ اللّه ُ بإيمانِهِ ، و أمّا المُشرِكُ فيَقمَعُهُ اللّه ُ بشِركِهِ، و لكنّي أخافُ علَيكُم كُلَّ مُنافِقِ الجَنانِ، عالِمِ اللِّسانِ ، يقولُ ما تَعرِفونَ ، و يَفعَلُ ما تُنكِرونَ
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने फरमाया:
मुझे रसूल अल्लाह स.ल.व.व. ने फरमाया था कि मुझे अपनी उम्मत के बारे में ना मोमिन से खटका है और ना मुशरिक से,क्योंकि आल्लाह मोमिन की उसके ईमान की वजह से बुराई से हिफाज़त करेगा और मुशरिक को उसके शिरक की वजह से ज़लील और शर्मिंदा करेगा,
कोई इसकी बात पर कान ना धरेगा बल्कि मुझे तुम्हारे लिए हर उस आदमी से अपमानित करेगा जो दिल से कपटी और ज़बान से विद्वान हो।
कहता वह है जिसे तुम अच्छा समझते हो और करता वह है जिसे तुम बुरा समझते हो
नहजुल बलाग़ा मकतूब नं 27