۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024
شعبان

हौज़ा/सुप्रीम लीडर ने कहां,शाबान के महीने के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम और अहलेबैत की इस ख़ास मुनाजात के बारे में रिवायत में है कि अहलेबैत इससे कभी ग़ाफ़िल नहीं होते थे। इसका लहजा मारेफ़त में डूबा हुआ, ज़बान मीठी, उच्च विषयवस्तु और शिक्षाओं से भरी है और इसकी मिसाल आम बोल चाल की ज़बानों में ढूंढी नहीं जा सकती हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली खामेनेई ने
शाबान के महीने की मख़सूस दुआ ‘मुनाजात ए शाबानिया’ के बारे में सिफ़ारिश कि हैं,


बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
दुआ मोमिन का हथियार, परेशान का सहारा और इल्म व ताक़त के अज़ीम स्रोत (अल्लाह) से कमज़ोर व नावाक़िफ़ इंसान के संपर्क का ज़रिया है।


अल्लाह से रूहानी रिश्ते और उस अज़ीम हस्ती के सामने हाथ फैलाए बग़ैर इंसान अपनी ज़िन्दगी में सरगर्दां रहेगा और उसकी ज़िन्दगी बेकार चली जाएगी। हे पैग़म्बर! कह दीजिए कि अगर तुम्हारी दुआएं न होतीं तो मेरा परवरदिगार तुम्हारी परवाह भी न करता। (सूरए फ़ुरक़ान, आयत-77)


बेहतरीन दुआ वह है जो अल्लाह के इश्क़ में डूबी हुयी मारेफ़त और इंसान की वास्तविक ज़रूरतों की पहचान के साथ की गयी हो और यह चीज़ सिर्फ़ पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लाम और उनकी पाक नस्ल की विचारधारा में, जो पैग़म्बर के इल्म और उनकी हिकमत के वारिस हैं, पायी जा सकती है। अलहम्दो लिल्लाह हमारे पास अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की दुआओं का ज़ख़ीरा है जिससे लगाव मारेफ़त, कमाल, मोहब्बत और पाकीज़गी अता करता है और इंसान को बुराइयों से पाक रखता है।


शाबान के महीने के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम और अहलेबैत की इस ख़ास मुनाजात के बारे में रिवायत में है कि अहलेबैत इससे कभी ग़ाफ़िल नहीं होते थे। इसका लहजा मारेफ़त में डूबा हुआ, ज़बान मीठी, उच्च विषयवस्तु और शिक्षाओं से भरी है और इसकी मिसाल आम बोल चाल की ज़बानों में ढूंढी नहीं जा सकती बल्कि बुनियादी तौर पर ज़बान में यह अंदाज़ पैदा करना आम इंसान के बस से बाहर है।
यह मुनाजात अपने माबूद, अपने महबूब और कायनात के मालिक की पाक ज़ात से, उसके सबसे नेक बंदों की दुआ, इलतेजा, मिन्नत और आजिज़ी का एक मुकम्मल नमूना है। यह मारेफ़त का सबक़ भी है और अल्लाह से मोमिन इंसान की इलतेजा और दरख़्वास्त का नमूना भी है।
वह पंद्रह मुनाजातें जो इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम से नक़्ल हुयी हैं, अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की दुआओं की ख़ुसूसियतें तो रखती ही हैं, साथ ही उनकी एक नुमायां ख़ुसूसियत यह भी है कि उन्हें एक मोमिन इंसान के लिए पेश आने वाले मुख़्तलिफ़ हालात की मुनासेबत से बयान किया गया है।
अल्लाह इन पाकीज़ शब्दों की बर्कत से सभी को फ़ायदा हासिल करने और अपने मन का विकास करने की तौफ़ीक़ अता करे।

इमाम ख़ामेनेई,

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