तन्ज़ीमुल मकातिब कश्मीर की नोनिहालन सहायक समिति
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी| आज मुस्लिम उम्माह, ख़ास तौर पर उत्पीड़ित राष्ट्र के लिए, बल्कि दुनिया के सभी उत्पीड़ित लोगों के लिए दर्द और विचार का दिन है। 4 जून वह दिन है जब एक आस्तिक व्यक्ति, एक मुजाहिद फ़क़ीह, एक धर्मी सेवक और एक दिव्य नेता इस दुनिया से चले गए। लेकिन उनकी आवाज़ आज भी ज़िंदा है, उनके विचार आज भी उज्ज्वल हैं, और उनका आंदोलन आज भी जारी है। हाँ! यह व्यक्ति दिवंगत इमाम, हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद रूहुल्लाह मूसवी खुमैनी (र) हैं।
आज हम एक ऐसे शख़्स के संघर्ष को श्रद्धांजलि देने जा रहे हैं जिसने पूरी दुनिया में मज़लूमों के दिलों में उम्मीद की शमा जलाई।
इमाम खुमैनी (र) वो शख़्सियत थे जिन्होंने "ला-शर्किया, ला-ग़रबिया" के नारे के ज़रिए दुनिया को बताया कि आज़ादी का रास्ता सिर्फ़ अहंकार और उपनिवेशवाद की गुलामी को खारिज़ करने में है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि हम न तो पश्चिम के गुलाम हैं और न ही पूरब के। हमारी प्रतिबद्धता सिर्फ़ अल्लाह के साथ है।
उपनिवेशवाद और अहंकार के ख़िलाफ़ संघर्ष में इमाम खुमैनी (र) ने साम्राज्यवादी शक्तियों को चुनौती दी: "हमारा युद्ध उत्पीड़न के ख़िलाफ़ है; हमारा युद्ध अहंकारी व्यवस्था के ख़िलाफ़ है; हमारा युद्ध दमनकारी व्यवस्था के सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रभुत्व के ख़िलाफ़ है।"
उन्होंने उपनिवेशवादी अवधारणा को चुनौती दी कि कुछ राष्ट्रों का निर्माण वर्चस्व के लिए और अन्य का निर्माण गुलामी के लिए किया गया है। इमाम ने इस दासतापूर्ण मानसिकता को तोड़ा और कहा: "मुस्तज़ऐफ़ीन लोग पृथ्वी के वारिस होंगे।" यह कुरान का संदेश है और इमाम खुमैनी ने इसे अमल में लाया। ईरान की इस्लामी क्रांति कोई क्षेत्रीय या राष्ट्रीय क्रांति नहीं थी, बल्कि एक बौद्धिक और वैश्विक क्रांति थी। इमाम खुमैनी ने कहा: "यह क्रांति वंचितों और उत्पीड़ितों की क्रांति है। यह उनके उद्धार का संदेश है।" आज दुनिया के हर कोने में हर उत्पीड़ित व्यक्ति की जुबान पर इमाम खुमैनी का नाम उम्मीद की तरह है। उन्होंने न केवल शब्दों से बल्कि कर्मों से भी साबित कर दिया कि अगर कोई राष्ट्र जाग जाए तो वह दुनिया की सबसे बड़ी ताकत को हरा सकता है। इमाम खुमैनी का उत्पीड़ितों को संदेश है कि हे दुनिया के उत्पीड़ित लोगों! जुल्म के आगे झुकना पाप है, चुप रहना अपराध है और जागना इबादत है। तुम अकेले नहीं हो! हर अत्याचारी के खिलाफ़ उठने वाली हर आवाज़, खून की हर बूँद, हर आँसू, हर दुआ - ये सब एक महान बदलाव की शुरुआत है।
हाँ! यह दुनिया उम्मीद पर बनी है और हम उस दिन का इंतज़ार करेंगे जब धरती पर न्याय की जीत होगी और अत्याचार हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।
प्रकाशित: नौनिहालन शाखा, सहायक समिति, तंज़ीमुल मकातिब कश्मीर
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