हौज़ा न्यूज़ एजेंसी, लखनऊ की रिपोर्ट के अनुसार, ग़दीर के अनुवादक, प्रखर शोधकर्ता, समर्थ एवं सशक्त शायर अल्लामा सय्यद अली अख्तर रिज़वी शऊर गोपाल पुरी ताब सराह की इल्मी व शेअरी सेवाओं के सम्मान में इल्म व अदब की नगरी "लखनऊ" में सरफ़राज़ गंज के शबिया रोज़ा मौला अली (अ) में उनकी 23वीं बरसी के अवसर पर एक गरिमामय समारोह आयोजित किया गया, जिसमें उनके काव्य संग्रह "कुल्लीयात-ए-शऊर" का भव्य लोकार्पण समारोह आयोजित किया गया।
समारोह में विद्वानों और साहित्यिक हस्तियों की भरमार थी और माहौल में अध्यात्म और साहित्य का मिश्रण था। समारोह की शुरुआत कारी अब्बास साहब की दिल को छू लेने वाली आवाज़ में कलाम ए इलाही की तिलावत से हुई, जिसने दिलों को रोशन कर दिया। इसके बाद जनाब कैफ गाजी पुरी ने साहित्यिक चेतना से ओतप्रोत अपने शब्दों के माध्यम से शोक कविता प्रस्तुत की और श्रोताओं को एक विशेष माहौल में डुबो दिया। इसके बाद जनाब क़र्तस करबलाई ने एक विशेष लहजे में बधाई दी जिससे महफ़िल करबला की याद से महक उठी।
काव्य श्रृंखला के बाद मौलाना सैयद हैदर अब्बास रिज़वी साहब ने अपने संक्षिप्त लेकिन व्यापक भाषण में ज्ञान और विद्वानों के महत्व पर प्रकाश डाला और विशेष रूप से मरहूम अदीब अस्र की विद्वत्तापूर्ण, साहित्यिक और काव्यात्मक सेवाओं पर गहन प्रकाश डाला। उनके भाषण में अतीत की विद्वत्तापूर्ण रिवायतो और आज के युग में उनके महत्व का एक सुंदर मिश्रण दिखाई दिया।
इसके बाद समारोह का सबसे महत्वपूर्ण चरण तब आया जब विद्वानों की उपस्थिति में “कुल्लियात-ए-शऊर” के अनावरण की रस्म अदा की गई। पुस्तक विमोचन में धार्मिक और साहित्यिक जगत की प्रमुख हस्तियाँ शामिल हुईं: मौलाना सैयद शमशाद अहमद गोपालपुरी, मौलाना सैयद गुलाम-उस सय्यदैन, हाशिर बाक़री जुरासी, मौलाना ज़हीर अहमद इफ़्तिख़ार, मौलाना मीसम जैदी, मौलाना सकलैन आबिदी, मौलाना मुस्तफ़ा अली ख़ान शुमैल, मौलाना शेख फ़िरोज़ अब्बास, मौलाना सय्यद मुहम्मद अली जैदी, मौलाना मासूम रज़ा, मौलाना सय्यद जावेद अब्बास मुस्तफ़वी।
किताब की रस्म रुनुमाई के बाद, दिल्ली से आए अहले बैत (अ) के उपदेशक, हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लिमीन मौलाना सय्यद शमशाद अहमद गोपालपुरी ने मजलिस को संबोधित किया और कलम उस्तादों की महत्ता और महानता पर प्रकाश डाला।
इस अवसर पर पुस्तक के संकलनकर्ता मौलाना सय्यद शाहिद जमाल रिजवी गोपालपुरी की उपस्थिति ने कार्यक्रम को विशेष अर्थ प्रदान किया। उन्होंने इस बहुमूल्य संग्रह को व्यवस्थित करके न केवल उस समय के दिवंगत कवि की याद को ताजा किया बल्कि गोपालपुर के इल्म व अदब इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय भी जोड़ा।
इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में अन्य विद्वान और बुद्धिजीवी भी मौजूद थे जिन्होंने अल्लामा शूअर की इल्मी सेवाओं को श्रद्धांजलि दी। कार्यक्रम का संचालन श्री अली अब्बास जैदी ने बड़ी शान, शिष्टता और गरिमा के साथ किया, जिससे पूरे कार्यक्रम की सुसंगति बनी रही और सभा का माहौल गंभीरता और साहित्य से भरपूर रहा।
यह कार्यक्रम न केवल इल्म व अदब विरासत की स्वीकृति थी बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक संदेश भी था कि इल्म व अदब की सेवा कभी व्यर्थ नहीं जाती। "कुल्लीयात-ए-शऊर" का प्रकाशन एक अकादमिक उपलब्धि है, साथ ही यह एक बौद्धिक भरोसा भी है, जिससे आने वाले समय में इल्म व अदब के प्यासे लोग लाभान्वित होंगे।
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