हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, अल्लामा रोशन अली ख़ान नज़फ़ी ने सन 1354 हिजरी में मनिहारपुर ज़िला सुलतानपुर की सरज़मीन पर पैदा हुए, मोसूफ़ के वालिद रजब अली ख़ान अपने ख़ानदान की मोअज्जज़ शख़्सियत के उनवान से पहचाने जाते थे।
अल्लामा ने इब्तेदाई तालीम अपने वतन में हासिल की, फ़िर शहरे लखनऊ के लिये आज़िमे सफ़र हुए और जामिया नाज़मिया में क़याम के दौरान हकीम मोहम्मद अतहर, मुफ़्ती अहमद अली, मौलाना रसूल अहमद गोपालपुरी और बाबा ए फ़लसफ़ा अल्लामा अय्यूब हुसैन सिरस्वी वगैरा जैसे जय्यद असातेज़ा से कस्बे फ़ैज़ किया।
जामिया नाज़मिया से फ़रागत के बाद इराक़ का रुख़ किया और नजफ़े अशराफ़ के होज़े इलमिया में सुकूनत इख्तियार करने के बाद आयतुल्लाह सय्यद मोहसेनुल हकीम तबातबाई और आयतुल्लाह सय्यद अबुल क़ासिम मूसवी खूई की ज़ेरे सरपरस्ती अरबी अदबयात और फ़िक़ह व उसूल में महारत हासिल की।
अल्लामा रोशन अली ख़ान 8 साल तक नजफ़े अशराफ़ में मसरूफ़े तालीम रहे, फिर नजफ़ से हिंदुस्तान वापस आए और जामिया नाज़मिया में उस्ताद की हैसियत से पहचाने गए, आपने जामिया नाज़मिया में होज़े नजफ़ का तदरीसी तर्ज़ अपनाया जो अहले इल्म के हलक़े में सराहा गया।
कुछ अरसे तक जामिया नाज़मिया में तदरीसी उमूर अंजाम देने के बाद बेंगलौर का रुख़ किया जहाँ तबलीगे दीन के फ़रीज़े को बा नहवे अहसन अंजाम दिया, कुछ अरसे बाद बंगलोर से मेरठ के लिए आज़िमे सफ़र हुए और वहाँ के मशहूर व मारूफ़ होज़े इलमिया “मनसबिया अरबी कालिज” की मुदीरियत संभाली।
अल्लामा मोसूफ़ ने चंद साल मंसबिया अरबी कालिज की मुदीरियत के फ़राइज़ अंजाम देने के बाद क़ुम का रुख़ किया और वहाँ पोहुचने के बाद तालीफ़ व तसनीफ़ में सरगरमे अमल हो गए, आपने वहाँ रहते हुए बहुत सी अरबी व फ़ारसी किताबों का सलीस उर्दू में तरजमा किया।
अल्लामा रोशन अली की शागिर्द हिंदुसतान, पाकिस्तान, बंगला देश और दीगर ममालिक में नुमाया शख्सियात के मालिक हैं जिनमें से: अल्लामा अदीबुल हिन्दी, मौलाना ज़की बाक़री (कनेडा) मौलाना मंजूर मोहसिन(अलीगढ़ यूनिवर्सिटी) मौलाना नाज़िम अली खैराबादी, मौलाना सफ़ी हैदर(सीक्रेटरी तंज़ीमुल मकातिब) और मौलाना नासिर अब्बास फंदेडवी वगैरा सरे फेहरिस्त हैं।
अल्लाह ने आपको 1 रहमत और 3 नेमतों से नवाज़ा आपके फर्ज़ंदों को मोहम्मद अब्बास , हसन अब्बास, और मौलाना अली अब्बास के नाम से पहचाना जाता है।
अल्लामा रोशन अली ने तहरीरी सूरत में दीने इस्लाम की बहुत ज़्यादा खिदमात अंजाम दीं,जिनमें से आपकी तालीफ़ात व तसनीफ़ात हैं और कुछ दिगर ज़बानों से उर्दू ज़बान में तर्जमा किया है, उनकी किताबों में से: विलायते फ़क़ीह इमाम खुमेनी, तोज़ीहुल मसाइल इमाम खुमेनी,मग़रिबी तमद्दुन की एक झलक, इसलाम के बुनयादी अक़ाइद, फिर मैं हिदायत पा गया तालीफ़ तेजानी समावी, सच्चों के साथ हो जाओ, खाशेईन की नमाज़, तहरीफ़े कुरान, अदालते सहाबा का नज़रया, कशकोले क़ाज़ी ज़ाहेदी, गुफ़तारे दिलनशीन, विलायते फ़क़ीह आयतुल्लाह मुंतज़िरी, चहल हदीस तालीफ़ इमाम खुमेनी, और दादे गुसतरे जहान तालीफ़ आयतुल्लाह इब्राहीम अमीनी वगैरा जैसे दुरहाए आबदार का तज़किरा करना निहायत ज़रुरी है।
आख़िरकार मैदाने इल्मो अमल का शहसवार जिसको दुनया रोशन अली के नाम से जानती थी, ज़िन्दगी के नशेब व फराज़ से ख़स्तगी की नज़्र हो गया और ये तालीफ़ व तसनीफ़ का रोशन चराग सन 1416 हिजरी में सरज़मीने लखनऊ पर गुल हो गया, आपके फ़िराक़ में नूरे इल्म से महरुमीयत का अहसास करने वालों का मजमा पछाड़ें खा रहा था, हज़ारों औलमा, अफ़ाज़िल तुल्लाब और मोमेनीन की मोजूदगी मे नमाज़े जनाज़ा अदा हुई और इमाम बारगाह गुफ़रानमआब में सुपुर्दे लहद कर दिया गया
माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़ : मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-9 पेज-129 दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, 2023ईस्वी।