۳۱ اردیبهشت ۱۴۰۳ |۱۲ ذیقعدهٔ ۱۴۴۵ | May 20, 2024
अल्लामा अली अखतर रिजवी

हौज़ा / पेशकश:  दनिश नामा ए इस्लाम, इन्टरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर दिल्ली काविश: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी अदीबे अस्र अल्लामा सय्यद अली अख्तर रिज़वी “शऊर” गोपालपुरी पंद्रह ज़ीक़ादा सन “तेरह सो सरसठ” हिजरी बा मुताबिक़ उन्नीस सितंबर सन उन्नीस सो अडतालीस ईस्वी में सरज़मीने गोपालपुर ज़िला सीवान सूबा बिहार पर पैदा हुए, आपके वालिद सय्यद मज़हर हुसैन रिज़वी थे, आपका ख़िताब “अदीबे अस्र’ ओर तखल्लुस “शऊर”था आप उर्दू अदब के बेहतरीन फ़नकार ओर नादेरतुज़ ज़मन शाइर थे

मोलाना तीन साल की उम्र में शफक़ते पदरी से महरूम हो गए, उनकी तरबियत में मादरे गिरामी ने वो किरदार अदा किया की आसमाने इलमो अदब का दरख्शा सितारा बना दिया, वालेदा की ख़ाहिश थी के आप अलिमो फ़ाज़िल बनें मोसूफ़ ने नासेरूल ईमान में इब्तेदाई तालीम हासिल की उसके बाद मदर्सए नाज़मिया लखनऊ की जानिब आज़िमे सफ़र हुए ओर मुफ़्ती सय्यद अहमद अली,मोलाना सय्यद रसूल अहमद गोपालपुरी ,बाबाए फ़लसफ़ा मोलाना सय्यद अय्यूब हुसैन सिरस्वी, मोलाना रोशन अली खाँ, इफ़्तेखारूल ओलमा मोलाना सआदत हुसैन खान ओर अल्लामा मोहम्मद शाकिर अमरोहवी जैसे जय्यद ओलमा से कस्बे फ़ैज़ किया

“शऊर” गोपालपुरी सन (उन्नीस सो इकहत्तर) ईस्वी में मोहम्मद सालेह इंटर कालेज हुसैन गंज में फ़ारसी लेक्चरआर के ओहदे पर मुंतखब कर लिए गए, आपने आख़री साँसो तक इस फरीज़े को बा हुस्ने खूबी अंजाम दिया ओर बेशुमार शागिर्दों की तरबियत फ़रमाई, मोसूफ़ ने मदर्सए नाज़मिया, इलाहबाद,ओर बिहार बोर्ड से आख़री असनाद हासिल कीं 

अल्लामा को किताब ओर किताब खाने से बहुत दिलचस्पी थी इसी लिए अपने वतन गोपालपुर में एक किताब खाने की तासीस की जिसमें बेशुमार किताबों के अलावा बाज़ क़दीमी ओर खत्ती नुसख़े भी मोजूद हैं, उसका नाम अल्लामा की वफ़ात बाद “मकतबा मीनारे शऊर” रखा गया

मोसूफ़ ने ज़रूरत के पेशे नज़र बाज़ जगहों पर मसाजिद ओर इमाम बाड़ों की तामीर व तासीस में सरगर्मी दिखाई ओर अपने दस्ते तआवुन के ज़रिये पाये तकमील तक पोंहचाया जिनमें सरे फेहरिस्त भागलपुर की मस्जिद है

अल्लामा ने हिंदुस्तान के मुखतलिफ़ ओर मुताअद्दिद इलाक़ों में मजालिसे अज़ा ख़िताब कीं जिसमें बरसों मेरठ मे अशरए ऊला ओर शेखपुरा हुसैन आबाद में अरबईन का अशरा सरे फेहरिस्त रहा, आपका ख़िताब आम फ़हम होता था, नोजवान नस्ल भी आपको बहुत पसंद करती थी, अहलेसुन्नत हज़रात भी कान्फ्रेंसों व आपकी मजलिस में शरीक होते थे, आपने बहुत सी मज़हबी ओर अदबी को अपनी मेहनते शाक़्क़ा से कामयाब बनाया जिनमें मजलिसे ओलमा व वाएज़ीन की कान्फ्रेंसें सरे फेहरिस्त हैं

आपने अपनी कसीर मसरूफ़यात के बावजूद तसनीफ़ों तालीफ़ से गुरेज़ नही किया बल्के एक बड़ा सरमाया अहले इल्म के लिए फ़राहम करने में रात दिन एक कार दिया, जिनमें से “तर्जुमए रिसालए अमलया इमाम खुमेनी” ( ये आपका सबसे पहला क़लमी कारनामा था जो इंक़लाबे इस्लामिये ईरान से नो साल क़ब्ल, अशद ज़रूरत के पेशे नज़र दो जिल्दों मे शाये हुआ) “तर्जुमा किताबुल गदीर अल्लामा अमीनी” ( इस तर्जुमे की दो जिल्दें चोरी के सबब ज़ाया हो गईं तो उन दो जिल्दों का तर्जुमा मरहूम के फ़र्ज़न्दे अर्जुमंद मोलाना सय्यद शाहिद जमाल रिज़वी ने ईरान पहुचने के बाद अंजाम दिया) ‘मसाइबे आले मोहम्मद तर्जुमए सोगनामे आले मोहम्मद”, “तर्जुमए अलहयात” (तीन जिल्दें), तर्जुमए तारीखे इस्लाम मे आएशा का किरदार (जो तबीयत ख़राब होने की वजह से मुकम्मल ना कर सके ओर बिस्तरे अलालत पर रहते हुए तुल्लाब से इमला कराकर मुकम्मल किया), तर्जुमए किताबुज़ ज़हरा अर्रबी बनामे खुशबू बहार की, गदीर के चार अलामती शाइर, शऊरे शहादत (कर्बला शहादते इमाम हुसैन से मुतल्लिक़ मज़ामीन), शऊरे विलायत (विलायत ओर गदीर से मुताआल्लिक़ मज़ामीन) वगैरा के असमा क़ाबिले ज़िक्र हैं, आपके क़लमी आसार तीन जिल्दों पर मुश्तमिल हैं,उसके अलावा मोसूफ़ ने बे शुमार इल्मी, तहक़ीक़ी ओर अदबी मज़ामीन तहरीर फरमाये जो हिंदुस्तान ओर पाकिस्तान के मक़बूल जराइद मे शाए हुए जिनमें से इसलाह (खजवा), अलवाइज़(लखनऊ), अलजवाद (बनारस) अलमुंतज़र (लाहोर)ओर इद्राक (गोपालपुर) क़ाबिले ज़िक्र हैं मोसूफ़ के मज़ामीन को मुरत्तब करके शाए किया जा रहा है

बाज़ किताबें गैर मतबूआ हैं जिनमें से: शऊरे आखरत ( मज़मुए अदइये, ज़ियारात वा मसाइल) ­­­शऊरे खिताबत (मजमुआ मजालिस,पाँच सफहात पर मुश्तमिल) दानिश्वराने गदीर ( हालाते ओलमा मकतबे गदीर) शऊरे इकमाले दीन ( आयए इकमाल पर पाँच मजालिस का मजमुआ) तोहफ़े इसना अशरया का मेयारे तहज़ीब ( ज़ेरे तबाअत)

तर्जुमए अलगदीर के सिलसिले से आयतुल्लाहुल उज़मा शेख़ नासिर मकारिम शीराज़ी की फरमाइश पर ईरान तशरीफ़ ले गए जहां कुमुल मुक़द्देसा ओर मशहदे मुक़द्दस की ज़ियारत से मुशर्रफ़ हुए, आपको मराजए इज़ाम ने उमूरे हसबिया के इजाज़े भी मरहमत फ़रमाए जिनमें से आयतुल्लाहुल उज़मा सय्यद मोहम्मद रज़ा गुलपाएगानि ओर आयतुल्लाहुल उज़मा शेख़ नासिर मकारिम शीराज़ी के असमा सरे फेहरिस्त हैं

अल्लामा अच्छे खतीब, मुसन्निफ़, मोअल्लिफ़, होने के साथ साथ एक अच्छे शाइर भी थे आपने शायरी की तमाम असनाफ़ मसलन क़सीदा, नोहा, गज़ल,क़तआत ओर रुबाइयात पर तबा आज़माई की जो मोतबर जराईद मे शाए होते रहें हैं मजमुए कलाम मुरत्तब हो चुका है जो कुल्लीयात शऊर के नाम से चार सो सफ़हात पर मुश्तमिल है

अल्लाह ने आपको छ नेमतें ओर एक रहमत आता की फरज़नदों के नाम कुछ इस तरह हैं: सय्यद मोहम्मद अख़्तर रिज़वी, मोलाना सय्यद शाहिद जमाल रिज़वी नजफ़ी,सय्यद मोहम्मद क़ैसर रिज़वी, सय्यद कोसर अली, सय्यद मोहम्मद अफ़सर, सय्यद रियाज़ जाफ़र रिज़वी

आखिरकार ये इलमो अदब का दरख्शाँ आफ़ताब “चव्वन साल” की उम्र में (सत्ताईस ज़ीक़ादा सन चोदह सो बाईस हिजरी) बामुताबिक़ दस फरवरी सन दो हज़ार दो ईस्वी में गुरूब हो गया, मोलाना सय्यद लियाक़त हुसैन (मुमताजुल फ़ाज़िल) की इक़तेदा में नमाज़े जनाज़ा अदा की गई ओर चाहने वालों की हज़ार आहो बुका के साथ गोपालपुर में मोजूद अपने आबाई क़ब्रुस्तान में सुपुर्दे खाक किया गया

माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़ : मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-८ पेज-२६५ दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, २०१९ ईस्वी।

             

            

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