हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत मासूमा सलाम अल्लाह अलैहा के पवित्र दरगार के खतीब ने कहा,अल्लाह की नज़र में न तो नेमतों का मिलना इज़्ज़त और करामत की निशानी है और न ही उनका छिन जाना ज़िल्लत की पहचान है, बल्कि ये दोनों इंसान के इम्तिहान (परीक्षा) का ज़रिया हैं।
विश्व के अहंकारी जब धन और संसाधन प्राप्त करते हैं तो न केवल दान नहीं करते, बल्कि लगातार जमाखोरी करते हैं और दूसरों को भी अपने धन और संसाधनों से फायदा उठाने की इजाज़त नहीं देते।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद मुहम्मद मेंहदी मीर बाक़िरी ने हज़रत मासूमा (सलाम अल्लाह अलैहा) के पवित्र मज़ार में पांचवीं मुहर्रम की शाम को मजलिस-ए-अज़ादारी में अपने भाषण में कहा,सूरए फज्र में कई महत्वपूर्ण चरण हैं।
पहला चरण शुरुआती पांच क़समों पर आधारित है, जो अल्लाह की तरफ़ से बयान हुई हैं और इनका संबंध उन नेमतों से है जो उम्मत बनाने के लिए पैग़म्बर-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम को अता की गईं।
मजलिस-ए-ख़ुबरागान-ए-रहबरी के सदस्य ने कहा,सूरए फज्र के दूसरे हिस्से में तीन अहंकारी और फासिद (भ्रष्ट) क़ौमों का ज़िक्र है जो ज़ाहिरी तौर पर ताक़तवर थीं, लेकिन अल्लाह के अज़ाब से नष्ट हो गईं।
उन्होंने आगे कहा,इस सूरह के तीसरे चरण में उन क़ौमों के विनाश का कारण बताया गया है जो तग़्यान (अत्याचार) का शिकार हुईं। उनकी गुमराही की सबसे बड़ी वजह उनकी ग़लत फिक्री गिनतियाँ और हिसाब-किताब थे। कुछ लोग धन-दौलत की बहुलता की वजह से फसाद में गिरे और कुछ दूसरों ने मुहताजी और ग़रीबी के कारण गुनाह किए, हालांकि ये दोनों ही हालात अल्लाह की तरफ़ से इम्तिहान हैं।
हौज़ा-ए-इल्मिया के उस्ताद ने कहा,अल्लाह की नज़र में इज़्ज़त और करामत का मापदंड धन या ग़रीबी नहीं है, बल्कि यह है कि ग़रीब और धनी बंदा किस तरह अपने इलाही फ़राइज़ (दायित्वों) को अदा करता है और इम्तिहान-ए-इलाही में कैसे कामयाब होता है।
उन्होंने आगे कहा,धन और संसाधनों का मिलना करामत की दलील नहीं है और न ही उनका छिन जाना ज़िल्लत की निशानी है, बल्कि ये दोनों इंसानी इम्तिहान के ज़रिए हैं, क्योंकि कुछ लोग जब दौलत हासिल करते हैं, तो दान नहीं करते, लगातार धन इकट्ठा करते रहते हैं और ग़रीबों की कोई मदद नहीं करते।
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