बुधवार 14 मई 2025 - 13:05
इल्म के बगैर अमल निजात बख्श नहीं हाकी/ सच्चा ईमान ज्ञान को आस्था और अच्छे कर्म में बदलने से मिलता है।

हौज़ा / आयतुल्लाह महमूद रजबी ने मंगलवार रात हौज़ा-ए इल्मिया क़ुम के शिक्षकों और छात्रों की उपस्थिति में मस्जिद-ए मासूमिया में आयोजित एक नैतिक व्याख्यान दर्स-ए अख़लाक़ में ज्ञान, ईमान और कर्म के आपसी संबंध को समझाते हुए कहा कि केवल ज्ञान और मारिफ़त अनन्त कल्याण के लिए पर्याप्त नहीं है। यहाँ तक कि यक़ीनी मारिफ़त भी, अगर वह आस्था (अक़ीदा) और अच्छे कर्म में न बदले, तो इंसान को मुक्ति नहीं दिला सकती।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, आयतुल्लाह महमूद रजबी ने मंगलवार की रात हौज़ा इल्मिया क़ुम के उस्तादों और छात्रों की उपस्थिति में मस्जिद-ए-मआसूमिया में दिए गए अपने अख़लाक़ी (नैतिकता पर आधारित) बयान में ज्ञान, ईमान और अमल के आपसी संबंध को स्पष्ट करते हुए कहा,सिर्फ़ जानकारी या ज्ञान, इंसान की हमेशा की सफलता के लिए काफ़ी नहीं है क्योंकि यदि पक्की समझ और यक़ीन भी विश्वास और अमल (कर्म) में न बदले, तो वह इंसान को नजात नहीं दे सकता।

फिरऔन जैसे लोग जिन्हें यक़ीन था, फिर भी जहन्नम के हक़दार बना

उन्होंने क़ुरआन की सूरा नम्ल की आयत 14 और उन्होंने (हक़ को) झुठलाया, हालांकि उनके दिल उसे पहचान चुके थे का हवाला देते हुए कहा कि फिरऔन और उसके साथियों को दिल से हज़रत मूसा (अ) की सच्चाई का यक़ीन था, लेकिन उन्होंने उस पर अमल नहीं किया, इसलिए अल्लाह के ग़ज़ब का शिकार हो गए।

नजात की त्रिकोणीय कुंजी: तौहीद, नुबूवत, मआद और उनके साथ विलायत

आयतुल्लाह रजबी ने कहा कि तौहीद नुबूवत (पैग़म्बरी), और मआद की पहचान ज़रूरी है, मगर यह काफ़ी नहीं है। इनके बीच वलायत एक सेतु का काम करती है जो ज्ञान को ईमान में बदलती है। जैसा कि ज़ियारत-ए-इमाम हुसैन (अस.) में कहा गया है,मैं गवाही देता हूँ कि आप एक पाक नूर थे ऊँचे नस्लों में...

अल्लाही इम्तिहान ईमान को मज़बूत करने वाली चीज़

उन्होंने हज़रत इब्राहीम (अ.स. द्वारा अपने बेटे इस्माईल (अ) की क़ुरबानी की घटना और उहुद और अहज़ाब की लड़ाइयों का ज़िक्र करते हुए कहा कि अल्लाह मोमिनों को अमल के मैदान में आज़माता है, ताकि उनका ईमान मज़बूत हो।

क़ुरआन ज़िंदा मोज़िज़ा जो ईमान को रौशन करता है

उन्होंने सूरा अनफाल की आयत 2 का हवाला दिया,सच्चे मोमिन वे हैं जिनके दिल अल्लाह का ज़िक्र सुनकर काँप उठते हैं, और जब उनके सामने उसकी आयतें पढ़ी जाती हैं, तो उनका ईमान और बढ़ जाता है।

उन्होंने कहा कि क़ुरआन से लगाव न केवल ईमान बढ़ाता है बल्कि इंसान को अल्लाह पर भरोसे की ऊँची मंज़िल तक पहुँचाता है। इमाम खुमैनी (रह.) ने भी गिरफ़्तारी और वतन वापसी के कठिन लम्हों में क़ुरआन से सुकून पाया।

अपने बयान के अंत में उन्होंने ज़ोर दिया कि क़ुरबत-ए-इलाही और उच्च स्तर के ईमान तक पहुँचने का एकमात्र रास्ता लगातार अच्छे कर्म का अंजाम देना है।

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