हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,विफाकुल मदारिस शिया पाकिस्तान के प्रमुख आयतुल्लाह हाफिज सैयद रियाज हुसैन नजफी ने कहा कि पाकिस्तान इस्लाम के नाम पर बना था, लेकिन यहाँ हर तरह कि बुराईया और अनैतिक कार्यक्रमों फ़िस्क-ओ-फुजूर की अनुमति है। हालाँकि, जब ईद-ए-मिलाद-उन-नबी, मुहर्रम या अरबईन के जुलूस निकाले जाते हैं, तो सुरक्षा के नाम पर उन पर रोक लगा दी जाती है क्या यह एक इस्लामी देश है?
शहादत और इमाम हुसैन अ.स. का संदेश:
उन्होंने कहा कि मौत दो तरह की होती है प्राकृतिक और शहादत। वह व्यक्ति सुखद भाग्य वाला है जिसे शहादत की मौत मिले। इमाम हुसैन (अ.स.) ने अपने नाना (पैग़म्बर मुहम्मद स.अ.व.) की उम्मत की इस्लाह (सुधार) के लिए कदम उठाया और धर्म की रक्षा के लिए शहादत को गले लगाया।
उन्होंने कहा कि आज शिया समुदाय को यह सोचना चाहिए कि क्या हमारी मजलिसें (शोक सभाएँ) इमाम हुसैन (अ.स.) के सुधारवादी संदेश को आगे बढ़ा रही हैं? क्या हमारी मजलिसों से लोगों को हिदायत (मार्गदर्शन) मिल रहा है?
मजलिसों में सुधार की ज़रूरत:
आयतुल्लाह नजफी ने कहा कि मजलिसों को कुरान और अहले बैत (अ.स.) की शिक्षाओं के अनुसार आयोजित किया जाना चाहिए, न कि दिखावे और पैसे के लिए। उन्होंने कुफ्र से जुड़े कार्यों से बचने की चेतावनी दी और कहा कि नबी और इमाम अल्लाह की मख्लूक (रचना) हैं, लेकिन खालिक केवल अल्लाह है।
पाकिस्तान की धार्मिक नीतियों पर सवाल:
उन्होंने पाकिस्तान की धार्मिक नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि यहाँ अहले बैत (अ.स.) के नाम पर जुलूस निकालने में रोड़े अटकाए जाते हैं, जबकि अश्लीलता भरे कार्यक्रमों को खुली छूट दी जाती है। क्या यह एक इस्लामी देश का चरित्र है? उन्होंने अब्बासी शासकों के ज़माने की याद दिलाई, जब अहले बैत (अ.स.) की ज़ियारत पर पाबंदी लगाई गई थी।
अहले बैत (अ.स.) का महत्व:
उन्होंने कहा कि हज़रत अबू बक्र और हज़रत उमर ने भी अपनी नजात अहले बैत (अ.स.) के ज़रिए माँगी थी, लेकिन दुर्भाग्य से उनके कुछ अनुयायी अपनी मजलिसों में अहले बैत (अ.स.) का नाम तक नहीं लेते।
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