हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, मरहूम आयतुल्लाह बहजत ने अपने एक दरस-ए-ख़ारिज के दौरान "कमाल-ए-इलाही तक पहुँचने के असरदार तरीकों" के बारे में बात करते हुए फ़रमाया:
इंसान अपनी ज़ात को स्वभाविक तौर से प्यार करता है और यही मख़्लूक अपने ख़ालिक की महबूब भी है। अंततः, इंसान को ऐसा अमल करना चाहिए जिससे यह मोहब्बत-ए-इलाही ज़ाहिर और आज़ाद हो।
ज़िंदगी के सफ़र और विविध गतिविधियों में अगर मकसद यह हो कि बंदा अपने और अल्लाह के दरमियान मोहब्बत को बढ़ाए तो वह हक़ीक़तन कमाल की तरफ रवाँ दवाँ है।
मेरी नज़र में, इस राह में सबसे आसान और सबसे प्रभावशाली अमल, "कसरत से सलवात भेजना" है, वह भी ऐसी नीयत के साथ जो सरासर इश्क़ और इख़लास पर आधारित हो।
जब बंदा मोहब्बत और इख़लास से सलवात भेजता है तो वह महसूस करता है कि किस तरह यह मोहब्बत परवान चढ़ती है और हक़ीकत बन कर जलवा-गर होती है।
हालांकि इस राह में अस्ल और बुनियाद ईमान और यक़ीन पर साबित-क़दम रहना है।
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