शुक्रवार 12 सितंबर 2025 - 19:00
आयतुल्लाह हायरी शीराज़ी का हिजाब के फरोग के लिए राहे हल

हौज़ा / आयतुल्लाह हायरी शीराज़ी ने हिजाब के अहया और दीनी आचरण जैसे कि चादर ओढ़ना और रोज़ा रखना को बढ़ावा देने पर ज़ोर देते हुए कहा,सख़्ती करने के बजाय जश्न-ए-इबादत आयोजित किए जाएँ और बच्चों को प्रोत्साहन देकर धर्म को उनके लिए मीठा और आकर्षक बनाया जाए।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , आयतुल्लाह हायरी शीराज़ी रहमतुल्लाह अलै ने हिजाब और इस्लामी आस्थाओं के पुनर्जीवन के लिए एक प्रभावशाली और स्नेहमय तरीका सुझाया है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि सख्ती के बजाय बच्चों को उत्साहित करने और इस्लामी मूल्यों को उनके लिए आकर्षक व प्रिय बनाने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा,क्या आप चाहते हैं कि हिजाब को पुनर्जीवित किया जाए? बहुत अच्छा! तो फिर हिजाब को प्रिय और आदरणीय बनाइए, ताकि इसका पुनरुद्धार हो सके।

आयतुल्लाह हायरी शीराज़ी का मानना था कि जब लड़कियाँ पहली बार चादर ओढ़ें, तो उनके लिए 'जश्न-ए-इबादत' आयोजित किया जाए।

उन्हें इनाम दिए जाएँ और उदारता दिखाई जाए, ताकि यह इबादतें उनके दिलों में मूल्यवान बन जाएँ।

जैसे कुछ लोग जन्मदिन मनाते हैं और कई बार ग़लत रास्तों पर चले जाते हैं, वैसे ही हमें भी इबादत के जश्न मनाने चाहिए।

पहला रोज़ा, पहला चादर पहनने का दिन, क़ुरआन सीखने का पहला सबक इन सभी मौकों पर ख़ुशी और उत्सव मनाना चाहिए।

बच्चों को नमाज़ और दीन की बातें प्यार और मिठास के साथ सिखाई जाएँ, न कि कड़वाहट और सख़्ती से।

उन्होंने विशेष रूप से यह कहा,खुशदिली के साथ बच्चों को नमाज़ की ओर बुलाइए, नाराज़ और सख़्त लहजे में नहीं!

निष्कर्ष:

आयतुल्लाह हायरी शीराज़ी की यह राय इस बात पर बल देती है कि इस्लामी जीवनशैली की ओर बच्चों को प्रेरित करना चाहिए, न कि डराकर या ज़बरदस्ती से। जब धार्मिक कार्यों को प्रोत्साहन, सम्मान और खुशियों के साथ जोड़ा जाएगा, तो वे बच्चों के लिए भी प्रिय और स्थायी बनेंगे।

स्रोत: राहे रुश्द, जिल्द 4, पृष्ठ 108

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