बुधवार 7 मई 2025 - 18:09
बौद्धिक ज्ञान का प्रसार मरहूम आयतुल्लाहिल उज़मा हायरी की एक महत्वपूर्ण बौद्धिक प्राथमिकता थीः आयतुल्लाह जवाद़ी आमली

हौज़ा / मरजय तकलीद कुरआन के प्रतिष्ठित व्याख्याकार हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा अब्दुल्लाह जवाद़ी आमोली ने आज सुबह क़ुम में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सेमिनार जदीद हौज़ा ए इल्मिया क़ुम की सौवीं सालगिरह और मरहूम आयतुल्लाहिल उज़मा शैख़ अब्दुल करीम हायरी यज़्दी को श्रद्धांजलि दी और द्घाटन सभा को संबोधित करते हुए फ़रमाया,हौज़ा ए इल्मिया का मूल कर्तव्य यह है कि वह क़ुरआन और अहले बैत (अ.स.) की गहरी शिक्षाओं में शोध और चिंतन करे।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार,मरजय तकलीद कुरआन के प्रतिष्ठित व्याख्याकार हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा अब्दुल्लाह जवाद़ी आमोली ने आज सुबह क़ुम में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सेमिनार जदीद हौज़ा ए इल्मिया क़ुम की सौवीं सालगिरह और मरहूम आयतुल्लाहिल उज़मा शैख़ अब्दुल करीम हायरी यज़्दी को श्रद्धांजलि दी और द्घाटन सभा को संबोधित करते हुए फ़रमाया,हौज़ा ए इल्मिया का मूल कर्तव्य यह है कि वह क़ुरआन और अहले बैत (अ.स.) की गहरी शिक्षाओं में शोध और चिंतन करे।

उन्होंने कहा,अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ.स.) ने नहजुल बलाग़ा में फ़रमाया है कि क़ुरआन एक बेमिसाल किताब है और इसके असली व्याख्याकार अहले बैत (अ.) ही हैं। मारिफ़त और विलायत की ऊँचाइयों पर सिर्फ़ अली (अ.स.) और उनके वंशज ही फयज़ हैं, और जन्नत के सबसे ऊँचे दर्जे भी उन्हीं के लिए हैं।

हज़रत आयतुल्लाह जवाद़ी आमोली ने आगे कहा,क़ुरआन एक अक़्ल और इल्म की किताब है। इमाम रज़ा (अ.स) ने फ़रमाया है कि अक़्ल (बुद्धि) अल्लाह की ओर से इंसान पर हुज्जत है यही वजह है कि किताब 'अल-काफ़ी' में इमाम कुलैनी (रह.) ने अपनी किताब की शुरुआत 'अक़्ल और जहालत' के बाब से की क्योंकि अक़्ल इस्लामी संस्कृति की बुनियाद है। अगर अक़्ल हो, तभी क़ुरआन और इतरत को समझा और सुरक्षित किया जा सकता है।

उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि मरहूम आयतुल्लाह हायरी यज़्दी ने चौदहवीं सदी में हौज़ा ए इल्मिया की नयी बुनियाद रखकर एक महान कार्य अंजाम दिया।अगर हौज़ा ए नजफ़ और क़ुम क़ायम हो पाए हैं, तो वह अक़्ल और नक़्ल से भरपूर शख्सियतों की बदौलत ही संभव हो सका है।

उन्होंने कहा,मरहूम आयतुल्लाह हायरी की विशेषता यही थी कि उन्होंने क़ुरआन, अक़्ली उलूम, फ़िक़्ह और उसूल को पहले से ज़्यादा फैलाया। उनकी कोशिशों की गहराई को समझना आवश्यक है।

उन्होंने हौज़ा ए इल्मिया क़ुम की स्थापना के कठिन हालात का ज़िक्र करते हुए कहा,उस वक़्त हालात बहुत कठिन और दमनकारी थे। इमाम ख़ुमैनी (रह.) कहा करते थे कि दिन में क़ुम से बाहर जाना पड़ता था और रात में लौटकर आना होता था।

उन्होंने आगे कहा,इस्लाम का संविधान हमें 'जामिद ज़ेहनियत' (स्थिर/बंद मानसिकता) की इजाज़त नहीं देता। सिर्फ़ रटे-रटाए ज्ञान को इकट्ठा करने से इल्म नहीं आता। हमें एक 'चश्मा' (झरना) बनना है जो इल्म को बहाए, ना कि सिर्फ़ संग्रह करे। इमाम सादिक़ (अ.स.) ने हमें इज्तेहाद और इल्मी नवाचार की शिक्षा दी है।

हज़रत आयतुल्लाह जवाद़ी आमेली ने कहा,क़ुरआन हमेशा नयी बात करता है, उसकी बातें कहीं और से नहीं मिल सकतीं। आज भी हमें चाहिए कि हम क़ुरआन से ताज़ा विचार निकालें और उन्हें दुनिया के सामने पेश करें।

उन्होंने फ़रमाया,अगर अक़्ल और अक़्ली उलूम हौज़ा में मौजूद हों, तो हम महान सफलताओं को पा सकते हैं, लेकिन अगर अक़्ल न हो, तो हम शुबहात के नीचे दब जाएंगे। मरहूम आयतुल्लाह हायरी के बेटे फ़क़ीह और फ़लसफ़ी थे, और यह उनकी कोशिशों का नतीजा है।

उन्होंने बल देते हुए कहा,ख़ुदावंद ने आयतुल्लाह हायरी को एक अमानत दी और वह इस अमानत के सच्चे रखवाले बने। अमीनुल्लाह' का मुक़ाम बहुत ऊँचा है। केवल वही व्यक्ति दीन का संरक्षक हो सकता है जो अल्लाह का अमीन हो।

अंत में उन्होंने कहा,जब हम अहले बैत (अ.स.) के हरम में दाख़िल हों, तो हमें इल्म की बुलंदियों की तमन्ना रखनी चाहिए। इमाम रज़ा (अ.) की बारगाह में इल्म की तलाश के साथ हाज़िर होना चाहिए। हमें चाहिए कि हम शेख़ हायरी (रह.) की तरह क़ुरआन और इतरत के उलूम हासिल करें और उनके प्रचार में संलग्न रहें।

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