हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, मरहूम आयतुल्लाह हायरी शिराजी ने कहा कि ज़्यादातर माता-पिता अपने बच्चों की तालीम (शिक्षा) पर खूब खर्च करते हैं ताकि वे डॉक्टर या इंजीनियर बनें, लेकिन यह सिर्फ़ आधी तरबियत है। उन्होंने एक मिसाल देते हुए कहा,अगर बच्चा पानी की डोल (बाल्टी) है और इल्म उसमें से निकाला जाने वाला पानी, तो तक़वा उसकी मज़बूत रस्सी है। जितना इल्म बढ़ेगा, उतनी ही तक़वा की रस्सी मज़बूत होनी चाहिए, वरना पानी नीचे गिर जाएगा!
आयतुल्लाह हायरी के मुताबिक, इल्म के साथ-साथ ज़िम्मेदारी और दीनदारी भी ज़रूरी है, और इन पर भी वैसा ही खर्च होना चाहिए जैसा तालीम पर होता है। अगर कोई दीनी मदरसा बच्चे को इल्म के साथ नमाज़, इबादत और खिदमत-ए-दीन (धर्म की सेवा) की तरफ मोड़े, तो चाहे इसका खर्च दोगुना हो यह खर्च करना वाजिब-उल-इहतराम (सम्मान के योग्य) और क़ाबिल-ए-तर्जीह (प्राथमिकता वाला) है।
उन्होंने माता-पिता से कहा,जब तुम दुनिया के लिए खर्च करते हो, तो क्या आखिरत (परलोक) के लिए खर्च करना ज़रूरी नहीं? सालिह (नेक) बनाना, सिर्फ़ पढ़ा-लिखा बनाने से अलग है।
(किताब: तमसीलात-ए-आयतुल्लाह हायरी शिराजी)
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